सपनों से जब पार गया मन
सुंदर सपने, कोमल आशा
पढ़ी प्रेम की यह परिभाषा,
सपनों से जब पार गया मन
संग निराशा छूटी आशा !
उसी प्रेम में उठना सीखा
जिसमें लोग गिरा करते हैं,
शब्दों का अब भेद खुल गया
मतभेद, मनभेद भरते हैं !
मौन समझ लें इकदूजे का
जब हम ऐसी जगह आ गये,
सहज शांति, आत्मीयता के
सान्निध्य में मन गुल खिल गए !
अब न कहीं जाना, कुछ पाना
दो ना एक हुए रहते हैं,
एक बोलना यदि चाहे तो
कर्ण दूसरे के सुनते हैं !
वाह
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (10-01-2021) को ♦बगिया भरी बबूलों से♦ (चर्चा अंक-3942) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--हार्दिक मंगल कामनाओं के साथ-
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
10/01/2021 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
बहुत बहुत आभार !
हटाएंस्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएं'मौन समझ लें इकदूजे का
जवाब देंहटाएंजब हम ऐसी जगह आ गये,'
- और क्या चाहिये ,यही तो साध्य है.
सुंदर सपने, कोमल आशा
जवाब देंहटाएंपढ़ी प्रेम की यह परिभाषा,
सपनों से जब पार गया मन
संग निराशा छूटी आशा !
कोमल भावनाओं से ओतप्रोत बहुत सुंदर इस रचना के लिए बधाई अनिता जी 🌹🙏🌹
उपनिषद सम सूत्र .... गहरे पानी पैठ ।
जवाब देंहटाएंकोमल भावनाओं का ताना-बाना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
इस रचना के लिए ढेरों बधाई अनिता जी।
सादर।