कंचन से इल्तजा
ऐ कंचन के वृक्ष !
तू क्यों नहीं खिलता
क्या इस दुनिया से तेरा दिल नहीं मिलता
तेरे ही साथ जन्मा हरसिंगार अब तक
हजारों फूल खिला चुका
तू न खिलने के कारण अपनी टहनियाँ
कई बार कटवा चुका
हर बार यही सोचा कि इस बार फूल आएंगे
पर पत्तों से भर जाती हैं डालियाँ
जाने कब फूल मुस्काएंगे
तू नहीं जानता क्या दुनिया की रीत
जो उपयोगी नहीं उसे हटा दिया जाता
कई कह चुके, क्यों न इसे गिराकर
दूसरा लगा लिया जाता
इस बरसात में तू समेट ले
सावन की सारी नमी अपनी शिराओं में
भर ले इंद्रधनुष से लेकर रंग
और जी भर के झूम ले फिजाओं में
अगले बसंत में तुझे है खिलना
तितलियों और भँवरों को निमंत्रण अभी से भिजवा देना
चाँद और सूरज से लेकर ऊष्मा और ठंडक
खिलने की चाह जगा लेना
सूनी-सूनी सी तेरी डालियाँ अब देखी नहीं जाती
रंगीन फूलों की स्मृति क्या तुझे नहीं सताती
जहाँ से जन्मा था तेरा बीज
वह वृक्ष भी तो खिला होगा
तभी उसने तुझे आँचल में भरा होगा
तुझे भी इस जगत को नए बीज देकर जाना है
आकाश में धरती की गंध व सूरज के रंगों को बिखराना है !
दुनिया की रीत से बेखबर अपनी दुनिया में हैं कंचन
जवाब देंहटाएंबहुत लोग ऐसे ही होते हैं जो अपने में ही मस्त रहते हैं
बहुत अच्छी प्रस्तुति
सही कह रही हैं आप, ऐसे लोगों पर किसी बात का असर ही नहीं होता
हटाएंकंचन के वृक्ष से की गई प्रार्थना में हमारी प्रार्थना शामिल हो । बस खूब खिले ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संगीता जी आपकी दुआ के लिए !
हटाएंबहुत ख़ूब...
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता आध्यात्मिक....और प्रकृति के बेहद नज़दीक भी
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
स्वागत व आभार डॉ. वर्षा जी !
हटाएंबहुत सुन्दर और सटीक रचना।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19-03-2021 को चर्चा – 4,002 में दिया गया है।
जवाब देंहटाएंआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
बहुत बहुत आभार !
हटाएंबहुत अच्छी रचना है यह अनीता जी आपकी । सोचने के लिए भी है, समझने के लिए भी है और महसूस करने के लिए भी है ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर विचारणीय सृजन अनीता जी ,सादर नमन
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