समर्पण की एक बूँद
मन अंतर में दीप जले
जब तक इस ज्ञान का कि
एक ही आधार है इस संसार का
कि जीवन उसका उपहार है
उस क्षण खो जाता अहंकार है
वरना प्रकाश की आभा की जगह
धुआँ-धुआँ हो जाता है मन
कुछ भी स्पष्ट नजर नहीं आता
चुभता है धुआँ स्वयं की आंखों में
और जगत धुंधला दिखता है
जो किसी और के धन पर अभिमान करे
उसे जगत अज्ञानी कहता है
फिर जो देन मिली है प्रकृति से
उस देह का अहंकार !
हमें खोखला कर जाता है
कुरूप बना जाता है
स्वयं की प्रभुता स्थापित करने का
हिरण्यकश्यपु का
जीता जागता अहंकार ही थी होलिका
प्रह्लाद समर्पण है
वह सत्य है, होलिका जल जाती है
रावण जल जाता है जैसे
अहंकार की आग में
न जाने कितने परिवार जल रहे हैं
समर्पण की एक बूँद ही
शीतलता से भर देती है
अज्ञान है अहंकार
समर्पण है आत्मा
चुनाव हमें करना है !
समर्पण है आत्मा तभी जीवित रहती है ...
जवाब देंहटाएंअहंकार मिट जाता है ... होलिका की तरह ... रावण की तरह
गहरा भाव लिए सुन्दर रचना ...
स्वागत व आभार !
हटाएंअज्ञान है अहंकार
जवाब देंहटाएंसमर्पण है आत्मा
चुनाव हमें करना है !बहुत अच्छी रचना है...खूब बधाई
स्वागत व आभार !
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 01-04-2021 को चर्चा – 4,023 में दिया गया है।
जवाब देंहटाएंआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
बहुत बहुत आभार !
हटाएंबहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंबधाई
स्वागत व आभार !
हटाएंकि जीवन उसका उपहार है
जवाब देंहटाएंउस क्षण खो जाता अहंकार है
मन इतना चिंतन कर ले तो अहंकार हो ही नहीं सकता ... सुन्दर कृति
वरना प्रकाश की आभा की जगह
धुआँ-धुआँ हो जाता है मन
संगीता जी, आपकी उपस्थिति रचना को नए अर्थ देती है, आभार !
हटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंअन्तर्राष्ट्रीय मूर्ख दिवस की बधाई हो।
स्वागत व आभार !
हटाएंसमर्पण का चुनाव ही उपयुक्त है। सुंदर सृजन के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंसही कहा है आपने, आभार !
हटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंठीक कहा अनीता जी आपने - चुनाव हमें करना है, हमें ही करना है । आपके विचारों से मैं शत-प्रतिशत सहमत हूँ ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर लिखा है आपने ।
जवाब देंहटाएंजीता जागता अहंकार ही थी होलिका
प्रह्लाद समर्पण है ।बहुत सुंदर.