रविवार, मार्च 14

मैं और तू

मैं और तू 


तू वहाँ भी है जहाँ नहीं दिखता 

तू जहाँ भी है ‘उससे’ नहीं छिपता 

जिसका ‘मैं’ तुझमें समा गया है 

‘तू’ जिसके ‘मैं’ में आ गया है 

अब खोज खत्म हुई 

देखता है ‘मैं’ ही जगत को 

वह ‘मैं’ जो असल में ‘तू’ है 

तो क्यों वह अब खुद को खोजेगा?

बल्कि जहाँ नहीं पाता था तुझे पहले 

वहाँ भी तेरे सिवा कुछ नहीं पाता 

 क्योंकि आँखें जो बाहर देखती हैं 

वह  भीतर ही तो दिखता है 

जब इन आँखों से ‘तू’ ही ‘मैं’ बनकर देखता है 

तो सारा जगत मेरे अंदर ही बसता है 

फिर कौन सा भेद रहा 

जहाँ तू नहीं है, हर कहीं 

‘मैं’ जहाँ भी देखे तेरी ही छवि देखता है 

अब कोई चारा नहीं ‘तू’ दूर हो जाए 

भला खुद से भी कभी कोई दूर जा सकता है 

जब ‘मैं’ न बचे तो एक नई ‘मैं’ मिलती है 

जो पल-पल तेरी सुरति से खिलती है ! 


 

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 14 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. हर जगह तू है . भला तुझसे क्या छुपा ही . इश्वर को आत्मसात करती सुनदर भावाभिव्यक्ति .

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