सोमवार, मार्च 15

मानव में खुद छुपा चितेरा

मानव में खुद छुपा चितेरा 


महायज्ञ सृष्टि का अनोखा 

शुभ पंचतत्व आहुति देते,

इक-दूजे में हुए समाहित   

रूप अनेकों फिर धर लेते !


जल में पावक, वायु गगन में 

भू  में रहते सभी समाए, 

भव्य महान प्रपंच रचा है 

पंछी,पशु, प्राणी जनमाये !


मानव में खुद छुपा चितेरा 

जिसने रच डाला यह आलम, 

उसके द्वारा भी करवाता 

बड़े-बड़े अनगिन  आयोजन !


सिर पर छप्पर, अन्न क्षुधा हित 

शिक्षा और स्वास्थ्य के साधन,  

कोई भय से न कंपता हो 

हर कोई पाए अपनापन  !


तन-मन स्वस्थ बनें जन-जन के 

यही परम का इक सपना है  , 

है सामर्थ्यवान जो जग में 

औरों का दुख ही हरना  है !


निज की खातिर बहुत जी लिए 

अब औरों हित जीना सीखें, 

जगती के इस महा हवन में 

स्वयं पावन आहुति सौंपें !

 

12 टिप्‍पणियां:

  1. आध्यात्मिक भावों से सम्पन्न मानव कल्याण की चाह लिए मनमोहक सृजन ।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 16 मार्च 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-3-21) को "धर्म क्या है मेरी दृष्टि में "(चर्चा अंक-4007) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  4. सच है कि मनुष्य तो बस एक मात्र साधन है आयोजन पूरा करने का ।
    सुंदर अभिव्यक्ति ।

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  5. परहिताय भावों को उच्च समर्थन देती सुंदर रचना।

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  6. बहुत ही सुंदर मोहक सृजन।
    सादर

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