गुरुवार, सितंबर 30

वही

वही 


एक अनंत विश्वास 

छा  जाता है जब 

जो सदा से वहीं था 

सचेत हो जाता है मन उसके प्रति 

तो चुप लगा लेता है स्वतः ही 

वह अखंड मौन ही समेटे हुए है अनादि काल से 

हर ध्वनि हर शब्द को 

सारे सवाल और हर जवाब भी वहीं है 

उसमें डूबा जा सकता है 

मगन हुआ जा सकता भी 

पर कहने में नहीं आता 

वह कभी स्वयं को नहीं जताता 

क्योंकि वहाँ दूजा कोई नहीं है 

प्रेम की उस गली में 

केवल एक वही रहता है 

जिससे यह सारा अस्तित्त्व 

बूँद बूँद बन कर बहता है !




9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-10-2021) को चर्चा मंच         "जैसी दृष्टि होगी यह जगत वैसा ही दिखेगा"    (चर्चा अंक-4204)     पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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  2. जिससे यह सारा अस्तित्त्व
    बूँद बूँद बन कर बहता है
    गहरी सोच
    सादर

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  3. प्रेम की उस गली में

    केवल एक वही रहता है

    जिससे यह सारा अस्तित्त्व

    बूँद बूँद बन कर बहता है !


    सुंदर गहराई लिए हुई रचना...

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  4. प्रेम की उस गली में
    केवल एक वही रहता है
    जिससे यह सारा अस्तित्त्व
    बूँद बूँद बन कर बहता है !
    वाह…अद्भुत 💕

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  5. "एक अनंत विश्वास" इसके आगे क्या, सब कुछ समेट लिया। गहन डुबकी का भाव निर्मित करने के लिए धन्यवाद।

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