मंगलवार, सितंबर 7

प्रेम उस के घर से आया

प्रेम उस के घर से आया 


बन उजाला, चाँदनी भी 

इस धरा की और धाया


वृक्ष हँसते कुसुम बरसा

कभी देते सघन छाया 


नीर बन बरसे गगन से  

लहर में गति बन समाया


तृषित उर की प्यास बुझती 

सरस जीवन लहलहाया 


खिलखिलाती नदी बहती 

प्रेम उसकी खबर लाया 


मीत बनते प्रीत सजती 

गोद में शिशु मुस्कुराया 



 

11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (08-09-2021) को चर्चा मंच      "भौंहें वक्र-कमान न कर"     (चर्चा अंक-4181)  पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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  2. खिलखिलाती नदी बहती

    प्रेम उसकी खबर लाया


    मीत बनते प्रीत सजती

    गोद में शिशु मुस्कुराया -बढ़िया साहित्यिक तेवर प्रतीक लिए आला गीत।
    kabirakhadabazarmein.blogspot.com

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  3. बन उजाला, चाँदनी भी
    इस धरा की और धाया

    वृक्ष हँसते कुसुम बरसा
    कभी देते सघन छाया
    लाजवाब भावों की अनुपम अभिव्यक्ति ।

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  4. बहुत सुन्दर ... भापूर्ण ...
    आशा का संचार करते शब्द ...

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