सोमवार, सितंबर 27

अस्तित्त्व और चेतना

अस्तित्त्व और चेतना 

ज्यों हंस के श्वेत पंखों में 

बसी है धवलता 

हरे-भरे जंगल में रची-बसी हरीतिमा 

जैसे चाँद से पृथक नहीं ज्योत्स्ना 

और सूरज से उसकी गरिमा 

वैसे ही अस्तित्त्व से पृथक नहीं है चेतना 

अग्नि में ताप और प्रकाश की नाईं

शक्ति शिव में समाई 

ज्यों दृष्टि नयनों में बसती है 

मनन मन में 

आकाश से नीलिमा को कैसे पृथक करेंगे 

हिरन से उसकी चपलता 

वैसे ही जगत में है उसकी सत्ता 

लहरें जल से  हैं बनती 

जल क्या नहीं उसकी कृति !


1 टिप्पणी:

  1. बहुत ही सुंदर प्रस्तुत,
    मनन मन में

    आकाश से नीलिमा को कैसे पृथक करेंगे

    हिरन से उसकी चपलता

    वैसे ही जगत में है उसकी सत्ता

    लहरें जल से हैं बनती

    जल क्या नहीं उसकी कृति

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