शुक्रवार, फ़रवरी 10

चुनाव

चुनाव 


शब्दों का एक जखीरा है वहाँ

हाँ , देखा है मैंने 

 ध्वनि एक,  जिससे उपजे शब्द अनेक 

एक  शै के भिन्न-भिन्न नाम 

उनमें से कुछ चुन लिए मैंने 

प्रेम, विश्वास और हंसी 

करते हुए शब्द ब्रह्म को प्रणाम 

शायद अनजाने में ही 

तुमने चुने होंगे 

युद्ध, सन्देह और पीड़ा 

तभी पनपी हैं दुःख की बेलें 

तुम्हारे आंगन में 

और यहाँ सुरभित फूलों की लताएँ !

सुवास से भरा है प्रांगण  

आँगन ही नहीं 

गली तक फैली है ख़ुशबू 

ऐसे ही कुछ देश चुन लेते हैं 

अपने लिए विकास और विश्वास 

और कुछ जाने किस भय में 

जिए जाते हैं खोकर हर आस ! 


11 टिप्‍पणियां:

  1. जिसकी जैसी सोच वो उसी अनुसार करता है ... चुनाव अपने हाथ होता है ... दूर दृष्टि शायद इसी लिए ज़रूरी है ...

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  2. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 13 फरवरी 2023 को साझा की गयी है
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. बहुत ही सुंदर सृजन प्रिय मैम

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