उर में मुक्ति राग बजें
आशा नहीं आस्था के हम मिलकर दीप जलायें
तज आकाश कुसुम तंद्रा के श्रद्धा पुष्प खिलायें,
हरकर तमस भरेंगे पावन मधुर सुवास हृदय में
मंगल प्रीत अल्पनाओं पर नेह घट विमल सजायें !
मोहपाश तोड़कर सहसा उर में मुक्ति राग बजें
नील गगन में भर उड़ान मन मयूर निर्मुक्त सजें,
पाषाणों से ढके स्रोत जो सिमटे अपने गह्वर
सहज प्रवाहित निर्बाधित बह निकलें उत्ताल लहर !
छाए बहार चहुँ ओर मिटे तामस हर इक घट का
झांकें गहन रहस्य खोजें खोलें पट घूँघट का !
जो गाए न गीत कभी ना जिनकी लय-धुन बांधी
परिचय करें अनाम स्वरों से गूँजे नयी रागिनी !
मोहपाश तोड़कर सहसा उर में मुक्ति राग बजें
जवाब देंहटाएंनील गगन में भर उड़ान मन मयूर निर्मुक्त सजें,
सुंदर मनोहारी सृजन
स्वागत व आभार मनोज जी !
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 19 फरवरी 2023 को साझा की गयी है
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत आभार यशोदा जी!
हटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अनुराधा जी !
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