बुधवार, जनवरी 3

कुसुमों में सुगंध के जैसा


कुसुमों में सुगंध के जैसा

राग नया हो ताल नयी हो 
कदमों में झंकार नयी हो, 
रुनझुन रिमझिम भी पायल की 
उर में  करुण पुकार नयी हो !

अभी जहाँ विश्राम मिला है  
बसे हैं उससे आगे राम, 
क्षितिजों तक उड़ान भर ले जो 
 हृदय को पंख लगें अभिराम !

अतल मौन से जो उपजा हो 
सृजित वही हो मधुर संवाद,
उथले-उथले घाट नहीं अब 
गहराई में पहुंचे याद !

नया ढंग अंदाज नया हो 
खुल जाएँ जो बंद हैं  द्वार ,
नये वर्ष में गीत नया हो
बरसे बरबस सरस उपहार !

अंजुरी भर-भर बहुत पी लिया  
अमृत घट वैसा का वैसा,
अब अंतर में भरना होगा 
कुसुमों में सुगंध के जैसा !

13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत आभार रवींद्र जी!

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  2. सुंदर प्रस्तुति, नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें

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  3. नया उत्साह और ताजगी भरता नववर्ष का नया गीत सरस और सुन्दर

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  4. श्रद्धासुमन में गीतांजलि का काव्यानुवाद देखा कुछ ही गीत पढ़कर विभोर हुए बिना न रह सकी . ऐसी महान कृति का इतना मधुर अनुवाद ! वाह

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    1. आपको काव्यानुवाद भाया, जानकर बहुत अच्छा लगा, आभार !

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