सोमवार, फ़रवरी 19

कैंची धाम की यात्रा

नैनीताल की एक छोटी सी यात्रा - २

कैंची धाम की यात्रा 


२० नवम्बर 

सुबह नाश्ते के बाद दस बजे हम नैनीताल से रवाना हुए।सबसे पहले शहर की चहल-पहल से लगभग तीन किलोमीटर दूर  स्थित ‘लवर्स पॉइंट’ नामक स्थान  देखा, जिसे सुसाइड पॉइंट भी कहते हैं। घाटी का दृश्य मनोरम था, यहाँ से खेत, झील और कई सुंदर पहाड़ियाँ दिखाई पड़ती हैं।हमने यादों के रूप में यहाँ की कई तस्वीरें कैमरे में क़ैद कर लीं।सूर्यास्त व सूर्योदय का दृश्य देखने भी लोग यहाँ आते हैं। जीप के ड्राइवर कम हमारे गाइड ने इस स्थान से जुड़ी एक कहानी बतायी। गाँव के एक लड़के और एक अंग्रेज लड़की की प्रेम कहानी; जो ब्रिटिश काल में घटी थी। इस दुखांत कहानी में लड़के को मरवा दिया जाता है, बाद में लड़की भी आत्महत्या कर लेती है। इसी जगह से घोड़े वाले एक अन्य प्रसिद्ध जगह टिफ़िन टॉप के लिए जाते हैं। इसके बाद हमारी कार चीना पीक पर रुकी, जहाँ से हिमालय के हिम शिखर दिखायी पड़ते हैं। शहर से छह किलोमीटर दूर स्थित चीना (नैना) पीक नैनीताल की सबसे ऊँची चोटी है। यहाँ हमने हिम से ढके हुए त्रिशूल, नंदा देवी तथा तीन अन्य शिखर देखने के लिए दूरबीन का उपयोग किया, बहुत ही सुंदर दृश्य था।इस पर्वत की चोटी से नैनीताल शहर की सुंदरता का विहंगम दृश्य भी देखाई देता है । यहाँ से थोड़ी दूर यात्रा करने पर पर ही सूखातल में स्थित इको केव गार्डन आ गया। इस स्थान को वर्ष 1990 में खोजा गया था। प्राकृतिक गुफाओं का उपयोग करके तथा सुंदर बाग-बगीचों द्वारा सुसज्जित यह पार्क एक लोकप्रिय पर्यटक स्थल बन गया है।कई सुंदर मूर्तियाँ और विभिन्न आकर्षक आकार भी इसकी शोभा बढ़ाते हैं। गुफाओं के नाम टाइगर, पैंथर, बैट, उड़ने वाली लोमड़ी और साही जैसे जानवरों के नाम पर रखे गये हैं। कुछ गुफाओं में बैठकर जाना पड़ता है। टाइगर तो नहीं दिखा, पर उसकी आवाज़ें निरंतर आ रही थीं। यहाँ अनेक पर्यटक आये हुए थे। 

कैंची धाम पहुँचे तो बारह बज गये थे। ​​कैंची धाम  नैनीताल से लगभग 17 किलोमीटर और भवाली से 9 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। इस आधुनिक तीर्थ स्थल पर बाबा नीब करौली महाराज का आश्रम है । प्रत्येक वर्ष की 15 जून को यहां पर बहुत बड़े  मेले का आयोजन होता है, जिसमें देश-विदेश के श्रद्धालु भाग लेते हैं।अल्पायु में ही बाबा नीब करौली को ईश्‍वर के बारे में विशेष ज्ञान प्राप्त हो गया था. वे हनुमानजी को अपना आराध्य मानते थे. मंदिर में कई सुंदर मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं। काफ़ी भीड़ थी, लोग बैठकर बाबा से अपनी मनोकामनाएँ बता रहे होंगे अथवा पूरी हो जाने पर कृतज्ञता व्यक्त करने आये थे। मन्दिर के सम्पूर्ण वातावरण में एक दिव्य ऊर्जा का अनुभव हो रहा था। नीब करौली बाबा की शिष्या सिद्धि माँ के बारे में एक पुस्तक ख़रीदी।

भवाली से कुछ आगे ही बढ़े होंगे की ड्राइवर ने कहा, चाय पीते हैं। मोड़ पर ही एक दुकान भी दिख गई। वहीं बैठे हुए उस रिज़ौर्ट के मैनेजर से बात की जहाँ हमें रुकना था। उसने बताया, यह रिज़ौर्ट मुक्तेश्वर में नहीं बल्कि चाँफी में है। ड्राइवर ने ईश्वर का धन्यवाद दिया कि कैसे उसे चाय के लिए रुकने की प्रेरणा जगी और उसने पता पूछा, वरना हम मुक्तेश्वर पहुँच गये होते। 



‘मचान’ रेस्तराँ में भोजन करने के बाद हम लगभग दो जगह से नदी पार करके बीस-पच्चीस मिनट कच्चे रास्ते पर पैदल चलकर चाँफी के जंगलसे सटे एक गाँव  में स्थित इस रिज़ौर्ट में आ पहुँचे हैं, जिसका नाम सॉलिट्यूड यानी एकांत बिलकुल सार्थक है। हमारा  सामान पहले ही एक महिला व एक पुरुष कुली ले आये थे।निकट ही कलसा नदी बह रही है, जिसकी आवाज़ एक मधुर धुन सी बज रही है । यहाँ माल्टे, संतरे और नींबू के कई बगीचे हैं।अनेक पक्षियों, झींगुरों और अन्य कीटों की आवाज़ें आ रही हैं। दो परिवार और रह रहे हैं।सामने ही हिम से ढकी चमकती हुई चोटियाँ एक स्वर्गिक अनुभव सी प्रतीत हो रही हैं।हमने रात्रि भोजन में सूप पिया और कुमाऊँनी खिचड़ी खायी। कल शिव धाम तथा मंदिर देखने मुक्तेश्वर जाना है। 

क्रमश:



4 टिप्‍पणियां:

  1. मंदिर मंदिर रहें | व्यवसाय से दूर तब तक सब ठीक है | सुन्दर |

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  2. बहुत सुंदर एवं रोचक यात्रा संस्मरण लिखा आपने अनिता जी,एकदम जीवंत चित्रण।
    सादर।

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    1. यात्रा विवरण आपको अच्छा लगा, जानकर ख़ुशी हुई श्वेता जी, स्वागत व आभार !

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