गुरुवार, फ़रवरी 22

मुक्तेश्वर और जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान

नैनीताल की छोटी सी यात्रा - ३

मुक्तेश्वर और जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान


२१ नंबर 

आज सुबह दस बजे हम मुक्तेश्वर के लिए रवाना हुए। उससे पूर्व रिज़ौर्ट में ही प्रातः भ्रमण किया नदी किनारे एक चट्टान पर स्थित योग कक्ष में प्राणायाम तथा योग साधना की। जल प्रपात, नदी तथा झील की कुछ तस्वीरें उतारीं।आलू-पराँठा और दही का नाश्ता करके आधा घंटा पैदल चल कर, दो बार पहाड़ी नदी पार करके हम उस स्थान पर पहुँचे जहाँ ड्राइवर प्रतीक्षा कर रहा था।

देवदार और चीड़ के वृक्षों से घिरी घुमावदार सड़कों से पद्मपुरी होते हुए हम नैनीताल से लगभग ५१ किलोमीटर की दूरी पर स्थित मुक्तेश्वर धाम पहुँचे। फलों के बगीचों एवं घने जंगलों से घिरे हुए इस स्थान पर भारतीय पशु अनुसंधान केंद्र की स्थापना की गई है। यहीं पर्वत के शिखर पर भगवान शिव का अति प्राचीन मंदिर है।​​मंदिर की वास्तुकला विश्व स्तरीय है, इसे भारत के संरक्षित स्मारकों की श्रेणी में रखा गया है। मंदिर में बहुत भीड़ थी।शिव के ५००० वर्ष पुराने मंदिर में स्वयंभू शिव के दर्शन करना अपने आप में एक अनुपम अनुभव था। ऐसी मान्यता भी है कि पाण्डवों ने अज्ञातवास के काल में यहाँ शिव लिंग की स्थापना की थी।इस  मंदिर में हर वर्ष कई महत्वपूर्ण समारोहों और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। निसंतान दंपति यहां संतान की कमाना से आते हैं। एक गाइड हमें मंदिर के निकट स्थित चौली की जाली नामक स्थान दिखाने ले गया। जहां से हिमालय की हिम से ढकी श्रृंखलाओं का सुंदर दृश्य देखा जा सकता है।

आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान द्वारा स्थापित एशिया की बड़ी दूरबीन दूर से दिखायी। नाग के फन की आकृति की एक चट्टान अति आकर्षक थी। तत्पश्चात हम घने वृक्षों से भरे हुए वन में भ्रमण करने के लिए रवाना हुए। वापसी में हमने शिवालय रेस्तराँ में दोपहर का भोजन किया। भालू गढ़ झरने में लगभग दो किलोमीटर की रोमांचक पैदल यात्रा करके हम विशालकाय झरने तक पहुँचे। रास्ते में बाँज और बुरांश के जंगल तथा साथ-साथ बहती हुई नदी मन मोह रही थी।काफ़ी ऊँचाई से गिरते हुए जल प्रपात के दृश्य नयनाभिराम थे। होटल वापस लौटे तो शाम के साढ़े पाँच बज गये थे। रिज़ौर्ट में रात्रि में विशेष भोज का आयोजन किया गया था।आग सेंकने का भी इंतज़ाम था, तीन-चार परिवारों का एक समूह भी आ गया था, जिससे रौनक़ बढ़ गई  थी। सबने आग के चारों ओर बैठकर सूप का आनंद लिया और फ़िल्मी गीतों की अंताक्षरी खेली।कल हमें राम नगर होते हुए जिम कार्बेट जाना है। 



२२ नवम्बर 

​​​​सुबह लगभग आठ बजे हम जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान के लिए रवाना हुए। मार्ग में कुछ देर के लिए भीमताल पर रुके।नीले रंग के जल वाला त्रिभुज के आकार का यह विशाल ताल तीन तरफ से पर्वतों से घिरा है। ताल में कमल के फूल खिले हुए थे। पांडव काल से संबंध रखने वाली इस झील के मध्य एक टापू है। यहाँ से सिंचाई हेतु छोटी-छोटी नहरें निकली गई है। हमने कुछ तस्वीरें उतारीं और आगे की यात्रा आरंभ की। जिम कॉर्बेट भारत का सबसे पुराना राष्ट्रीय पार्क है, जो बंगाल बाघ की रक्षा के लिए स्थापित किया गया है। जिसके लिए हमने अपनी सफारी टिकट पहले ही बुक कर ली थी। नेट पर पढ़ा, जिम कार्बेट अचूक निशानेबाज थे, साथ ही उन्हें वन्य पशुओं से प्रेम भी था। कुमाऊँ के कई आदमखोर शेरों को  मारकर उन्होंने अनेकों की जानें बचायी थी। गढ़वाल के रुद्रप्रयाग में भी एक आदमखोर शेर को जिम कार्बेट ने मारा था। उनकी अनेक पुस्तकों में से एक पुस्तक 'द मैन ईटर ऑफ रुद्र प्रयाग' है, जो बहुत प्रसिद्ध हुई। 

हमें कुमाऊँ विकास निगम की खुली जीप द्वारा पार्क के मुख्य द्वार ढेला तक ले जाया गया, जहाँ वनविभाग कर्मचारी द्वारा पहचान पत्र की जाँच की गई। आकाश बिलकुल साफ़ था और धूप खिली हुई थी। गेट के पास ही जंगली फूलों पर तितलियाँ मंडरा रहीं थीं। साथ में अनुभवी गाइड भी दिया गया था, जो पशुओं के बारे में कई रोचक जानकारियाँ देता हुआ जा रहा था। उसने बताया जंगल में बाघ, हाथी, भालू, सुअर, हिरन, चीतल, साँभर, तेंदुआ,नीलगाय, आदि अनेक 'वन्य प्राणी' देखने का अवसर मिल सकता है। इसी तरह इस वन में अजगर तथा कई प्रकार के साँप भी निवास करते हैं। यहाँ लगभग ६०० रंग-बिरंगे पक्षियों की जातियाँ भी दिखाई देती हैं।कॉर्बेट नैशनल पार्क को चार जोन में बाँटा गया है। प्रवेश द्वार से अंदर जाते ही रोमांचक सफर शुरू हो गया। कुछ दूर तक पक्की सड़क के बाद केवल कच्ची पगडंडियों पर ही जीप दौड़ती जा रही थी। पंछियों की मीठी आवाज़ें बरबस लुभा रही थीं। कुछ सुंदर पंछियों के चित्र भी हमारे कैमरे में क़ैद हो गये। एक विशालकाय हॉर्नबिल पक्षी को दिखाने के लिए गाइड ने काफ़ी देर प्रतीक्षा की, जब उसने उड़ान भरी तो उसकी सुन्दर आकृति स्मृति सदा के लिए मन में बस गई। 

हमने अनेक पहाड़ियों, रामगंगा नदी के बेल्ट, दलदलीय गड्ढे, घास के मैदान और एक बड़ी झील​​ के दर्शन भी किए जो जिम कॉर्बेट पार्क की शोभा बढ़ाती है।अब इस पार्क का नाम राम गंगा नेशनल पार्क हो गया है।सूखी हुई घास के मैदान सुनहरे रंग के हो गये थे और दूर क्षितिज में हरी पहाड़ियों के सान्निध्य में अति शोभित हो रहे थे। हमने चितकबरे व सुनहरे हिरणों की कई प्रजातियों को निहारा। जीप को आते देखकर मृग शावक बड़े ही शांत भाव से मुड़कर देखते फिर आगे बढ़ जाते। घने हरे झाड़ों में छिपे हुए वे रामायण के स्वर्ण मृग की याद दिला रहे थे। वृक्षों की डालियों पर बैठे हुए लंगूर तथा वानरों की कई टोलियों ने भी हमारा ध्यान खींचा। उनके परिवार की मंडली एक-दूसरे का ख़याल रख रही थी। अचानक जंगल की निस्तबधता को भंग करती हुई कुछ आवाज़ें गूंजी, तो ड्राइवर रुक गया,गाइड ने बताया, यह टाइगर के निकट होने की निशानी है। बंदर व पक्षी अन्य जानवरों को सचेत  करने  के लिए ऐसी आवाज़ निकलते हैं। लगभग आधा घंटा हम वहीं चुपचाप खड़े रहे, एक दो और सफारी जीपें भी वहाँ आ गयीं। यहाँ सफारी पर आने वाले हर पर्यटक की दिल्ली इच्छा होती है कि कम से कम एक बाघ के दर्शन तो उसे हो जायें, पर शायद आज यह इच्छा पूरी होने वालू नहीं थी। टाइगर बाहर निकलने के बजाय शायद जंगल में भीतर प्रवेश कर गया था। एक-एक करके सभी वाहन चल पड़े और हम मुख्य द्वार से बाहर आ गये। रात को काठगोदम से दिल्ली की हमारी ट्रेन समय पर थी। सुबह मंझला भाई स्टेशन पर लेने आ गया था, स्वादिष्ट नाश्ता करके दोपहर एक बजे एयरपोर्ट के लिए निकले और हवाई यात्रा से देर रात तक बैंगलुरु पहुँच गये। नैनीताल की यह यात्रा एक सुखद स्मृति की तरह मन में बस गयी है।  


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