गुरुवार, फ़रवरी 15

नैनीताल की एक छोटी सी यात्रा

नैनीताल की एक छोटी सी यात्रा 

१९ नवम्बर 

परसों सत्रह तारीख़ की सुबह हम बंगलुरु से लखनऊ पहुँचे थे। लखनऊ हवाई अड्डे का टर्मिनल-२ अभी भी दीपावली की सजावट के कारण बहुत आकर्षक लग रहा था। जूम कार से होटल पहुँच गये। जहां भतीजी की शादी होनी थी। मेंहदी का कार्यक्रम आरंभ होने वाला था। सुंदर सजावट के मध्य तीन कलाकार पारंपरिक पोशाक में मेंहदी लगाने के लिए भी तैयार बैठे थे। युवा इवेंट मैनेजर सारा प्रबंध देख रही थी। ढोल बजने लगे और राजस्थानी लोक गीत गाया गया। अन्य लोगों के साथ भावी दुल्हन ने भी कार्यक्रम में सुंदर नृत्य किया। सभी रिश्तेदार आपस में बातें करते रहे, आपस में मिलने का यही तो मौक़ा होता है।अगला कार्यक्रम रात को था, सो शाम को हम अंबेडकर पार्क देखने चले गये।अत्यंत विशाल और अपने आप में अजूबा यह पार्क मायावती द्वारा २००२ में बनवाया गया था।रात नौ बजे विवाह का अगला कार्यक्रम आरम्भ हुआ। पंडित जी ने मन्त्रोच्चारण के मध्य सगन की रस्म पूरी करवायी। चुन्नी चढ़ाने की रस्म के बाद वर-वधू के मध्य अंगूठी का आदान-प्रदान हुआ। कई रिश्तेदारों के साथ उन दोनों भी नृत्य किया। दूसरे दिन दिन में हल्दी की रस्म भी पूरे विधिविधान और गाजे-बाजे के साथ हुई, रात को विवाह संपन्न हुआ और सुबह तारों की छाँव में विदाई। 

कल रात्रि अर्थात अठारह नवम्बर को हम बाघ एक्सप्रेस से लखनऊ से रवाना हुए। चारबाग़ स्टेशन से ट्रेन एक घंटा देरी से चली।आज सुबह दस बजे हम काठगोदम पहुँच गये। ड्राइवर दीप लेने आया था। बचपन से सुनते और पढ़ते आ रहे थे कि नैनीताल उत्तराखण्ड के कुमायूँ क्षेत्र का एक सुंदर पर्यटक स्थल है; ग्रीष्मकालीन अवकाश में यह नगरी पर्यटकों से पूरी तरह भर जाती है। शीतऋतु में यहाँ हिमपात देखने भी लोग आते हैं; पर कभी जाने का अवसर नहीं मिला था।होटल पहुँचने तक गूगल पर कुछ जानकारी एकत्र की, समुद्र तल से नैनीताल की ऊँचाई छह हज़ार फ़ीट से कुछ अधिक है। इस अंचल में अनेक मनोरम झीलें हैं। इनमें से प्रमुख नैनी झील है। यह झील चारों और से बर्फ से ढके पर्वतों से घिरी है, इसकी कुल परिधि लगभग दो मील है।रास्ते में हनुमान गढ़ी के सुंदर मंदिर में रुके। हनुमान जी के साथ ही यहाँ भगवान राम और शिव के मंदिर भी हैं। यह मंदिर बाबा नीब करौली के आदेशानुसार 1950 के आसपास बनाया गया था।यह स्थान अपने सूर्यास्त के दृश्य के लिए भी प्रसिद्ध है। नैनी झील की शोभा दिखाते हुए ड्राइवर हमें होटल ‘नैनी रिट्रीट’ले आया है। झील में रंग-बिरंगी नावें चल रही थीं, पर्वतों पर खड़े ऊँचे वृक्षों तथा गगन में विचरण करते बादलों का प्रतिबिंब जल में शोभित हो रहा था।।झील के उत्‍तरी किनारे को मल्‍लीताल और दक्षिणी किनारे को तल्‍लीताल कहते हैं।स्कंद पुराण के अनुसार अत्रि, पुलत्स्य और पुलह ऋषि ने इस झील में मानसरोवर का जल भरा था। 



आज भारत-आस्ट्रेलिया के मध्य क्रिकेट का फ़ाइनल खेला जा रहा है। भारत ने २४० रैन बनाये हैं। करोड़ों लोगों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं। दोपहर को पौने दो बजे ही नहा-धो कर तैयार हो गये।इस होटल में बेगोनिया के कई रंगों के फूल खिले हैं।होटल में ही कुछ देर टहलने व फ़ोटोग्राफ़ी करने के बाद नीचे उतरकर ‘नैना देवी’ का मंदिर देखने गये।
नैनी झील के उत्‍तरी किनारे पर नैना देवी का भव्य मंदिर स्थित है। माना जाता है कि जब शिव सती की मृत देह को लेकर स्थान-स्थान पर जा रहे थे, तब जहाँ  उनके शरीर के अंग गिरे वहाँ शक्तिपीठों की स्‍थापना हुई। नैनी झील के स्‍थान पर देवी सती की आँख गिरी थी। हर वर्ष माँ नैना देवी का मेला नैनीताल में आयोजित किया जाता है।पास ही एक गुरुद्वारा भी है, उसमें एक महिला ग्रंथी पाठ कर रही थी तथा दो अन्य महिलाएँ उसे दोहरा रही थीं। एक भव्य मस्जिद भी निकट ही दिखायी दी, जिसकी वास्तुकला का जवाब नहीं है।हमने नैनी झील में नौकायन का आनंद भी लिया। नाविक ने बहुत ही धैर्य से  सभी प्रश्नों का जवाब दिये। झील के एक ओर स्थित है मॉल रोड‍ जिसे अब गोविंद बल्‍लभ पंत मार्ग कहा जाता है। पर्यटकों के लिए यह रोड आकर्षण का केंद्र है। झील के दूसरी ओर की सड़क को ठंडी सड़क कहते हैं। यह  मॉल रोड जितनी व्‍यस्‍त नहीं रहती। यहां पाषाण देवी का मंदिर भी है। ठंडी रोड पर वाहनों को लाना मना है।मंदिर से निकल कर भूटिया मार्केट से गुजरते हुए हम मॉलरोड पर आ गये। जहां तीन-चार वस्तुएँ ख़रीदीं। घर के लिए लकड़ी की एक नाम पट्टिका ख़रीदी, जो कारीगर ने हाथों हाथ बना कर दी। कल हमें मुक्तेश्वर जाना है। 

क्रमशः 





4 टिप्‍पणियां: