प्रेम
बाँटने से बढ़ता है प्रेम
भीतर भरा है प्रेम का जो स्रोत
उसे लुटाने का
अवसर ही जीवन है
बन जाता तब तुम्हारा मन
ईश्वर का आँगन है
वही बहता है शिराओं में रक्त बनकर
वही श्वास के साथ फेरा लगाता है
उसकी याद में बहाया एक-एक अश्रु
महासागरों की गहराई भर जाता है
प्रेम कोई शब्द नहीं
न ही भाव या भावना कोरी
नहीं कृत्य या चाहत कोई
यह तुम हो
तुम्हारे होने का प्रमाण है
यही तो धरा को धारने वाला आसमान है
प्रेम श्रद्धा और विश्वास है
किसी को कुछ देने की आस है
हज़ार ख़ुशियों के फूल उगाने वाली बेल है
प्रेम बना देता हर आपद को खेल है
इसकी एक किरण भी उतर जाये मन में
बिखेर देना किसी महादानी की तरह
प्रेम में होना ही तो होना है
यही बीज दिन-रात मनु को बोना है !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 27 जून 2024 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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बहुत बहुत आभार रवींद्र जी !
हटाएंवाह प्रेम की महत्ता को रेखांकित करती सुंदर सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब👌👌👌🙏🙏
स्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंप्रेम तुम्हारे होने का प्रमाण है !
जवाब देंहटाएंसुंदर सटीक व्याख्या प्रेम की !
स्वागत व आभार मीना जी !
हटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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