एक कतरा प्रेम
बचपन में हम झगड़ते हैं
यौवन में कुछ न कुछ पकड़ते हैं
वह तो बाद में पता चलता है
हक़ीक़त में जिसकी तलाश है
वह न झगड़ने से मिलती है
न पकड़ने से !
वह तो हवाओं में
झूमने की कला है !
बारिश में भीगने
आँखों से बतियाने
हाथ में हाथ डाले
हरी घास पर
डोलने में हर बार
भीतर कुछ पला है !
जो न था पास, जब
कई अपने पीछे छूट गये
कुछ सपने बेवजह ही टूट गये !
सत्य है राम का नाम
सुना न जाने कितनी ही बार
पर क्यों फुला लिया मुँह
जब आये थे राम प्रेम बनकर
जीवन पथ पर राह दिखाने !
जिस प्रेम का एक कतरा भी
छू जाये मन को
तो गूँजने लगते हैं मीठे तराने !
उस एक के लिए ही
हर झगड़ना था शायद
उसे ही पकड़ना था
अब जाना है राज दिल ने
यूँ ही ‘मैं’ का वह अकड़ना था !
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 08 जून 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार यशोदा जी !
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंहवाओं में झूमने की कला ! यही आ जाए तो क्या कहना !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार नूपुरं जी !
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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