जीवन रहे बुलाता हर पल
भीतर इक संसार दूसरा
शायद यह जग कभी न जाने,
इस जीवन में राज छिपे हैं
लगे सभी हैं जिन्हें छिपाने !
लेकिन इसी अँधेरे में इक
दीप जला करता है निशदिन,
देख न पाते, कहीं दूर है
खुला जो नहीं तीसरा नयन !
कोई कहाँ जान सकता है
मन की दुनिया बड़ी निराली,
यूँ ही नहीं सुनाते आगम
अंधकार ने ज्योति चुरा ली !
फिर भी यह श्वासें चलती हैं
चाहे लाख तमस ने घेरा,
कैसे अर्थवान हो जीवन
इसी प्रश्न ने डाला डेरा !
कोई पीछे खड़ा हँस रहा
जीवन रहे बुलाता हर पल,
रंग-बिरंगी इस दुनिया की
याद दिलाती है हर हलचल !
कितना गहरे और उतरना
अभी सफ़र बाकी है कितना,
जहां पुष्प प्रकाश के खिलते
जहाँ बसा अपनों से अपना !
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 17 जून 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार यशोदा जी !
हटाएंसच है अनीता जी ,मन की दुनिया निराली होती है ...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार शुभा जी !
हटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंमन की दुनिया तो बस ऐसी ही है, रंग बिरंगी..उन्मुक्त।
स्वागत व आभार रूपा जी !
हटाएंबहुत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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