एक खुला आसमान
पहुँचे नहीं कहीं मगर, हल्के हुए ज़रूर
मनों ने हमारे, कई बोझे उतारे हैं
बाँध कर रखा जिन्हें था, खोने के त्रास से
मुक्त किया जिस घड़ी, आसपास ही बने हैं
प्रेम की कहानियाँ अब, रास नहीं आ रहीं
अहं को ही प्रेम का, नाम जब से धरे हैं
अहं की वेदी पर, शहीद हुआ प्रेम सदा
प्रेम की कहानियों के, हश्र यही हुए हैं
एक खुला आसमान, एक खुला अंतर मन
हर तलाश पूर्ण हुई, होकर गगन जिये हैं
जहाँ से चले थे बुद्ध, वहीं लौट आये हैं
पाया नहीं कुछ नवीन, व्यर्थ त्याग दिये हैं
जीवन का देवता, भेंट यही माँगता है
उतार दे हर बोझ जो, संग सदा चले है
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत बहुत आभार यशोदा जी !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंपाया नहीं कुछ नवीन, व्यर्थ त्याग दिये हैं
जवाब देंहटाएंव्यर्थ त्याग दें यही बड़ी बात है
सार्थक सृजन।
स्वागत व आभार !
हटाएंPrakruti aur uska sath - bahut he khubsurat rachana !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंस्वागत व आभार !
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