मंगलवार, नवंबर 11

जीवन राग


जीवन राग 

मिट जाते हैं सारे द्वन्द्व 

झर जाता है हर विरोध 

ख़त्म हो जाता है सदा के लिए संघर्ष 

जब नत मस्तक होता है मन (तेरे सम्मुख)

खो जाती है हर चाह 

विलीन हो जाती है जगत की कामना 

तुष्टि, पुष्टि और संतुष्टि भी 

खिलौनों सी प्रतीत होती है 

तब कर्मबंधन नहीं बंधता 

जीवन राग बन जाता है ! 


पात्र 

ऋषि मंत्रों के द्रष्टा थे 

देखते थे, देख लेते थे 

अस्तित्त्व में छुपे विचारों को 

सारा ज्ञान सिंचित है कहीं 

बस उसे उजागर करना है 

जैसे जल बहुत है कूप में 

उसे पात्र में भरना है 

हम कब और कैसे पात्र बनें 

यही तय करना है ! 

11 टिप्‍पणियां:

  1. दोनों ही रचनाएँ अत्यन्त सुन्दर सार्थक है ।

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  2. दोनों रचना बेहद सुंदर हैं और सार्थक संदेश दे रहे।
    सस्नेह
    सादर।

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  3. मैं भी कभी-कभी अपनी चाहतों और उलझनों को जरूरत से ज़्यादा पकड़ लेता हूँ, और फिर ऐसे शब्द मुझे याद दिलाते हैं कि शांति असल में भीतर ही बैठी है। जब मन हल्का हो जाता है, तो हर चीज़ खेल जैसी लगती है और जीवन सच में एक राग की तरह बहने लगता है।

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