रामायण - मिथक से परे इतिहास की झलक
२३ अक्तूबर २०२५
आज हम श्रीलंका में हैं। इस देश का नाम किस भारतीय ने नहीं सुना है? रामायण की कथा में रावण की स्वर्णमयी लंका का उल्लेख होता है, जिसे हनुमान ने जलाया था।जहाँ भगवान राम रामेश्वर से सेतु बनाकर पहुँचे थे और सीता मैया को लंकापति की क़ैद से छुड़ाया था। लगभग एक महीने पहले ही हमें श्रीलंका में होने वाली ‘रामायण यात्रा’ के बारे में जानकारी मिली थी। पूर्व में इस्कॉन से जुड़े श्री माधवानंद जी के साथ लगभग पचास लोगों के एक समूह के साथ हमने इस यात्रा में सम्मिलित होने का कार्यक्रम बनाया। सुबह सात बजे हम बैंगलुरु के कैंपागोड़ा हवाई अड्डे पर पहुँचे तो अन्य यात्री भी आ चुके थे। सभी को टिकट, वीज़ा तथा नाश्ते व लंच के लिए पैकेट्स दिये गये, पूरी यात्रा के दौरान अपने साथ रखने के लिए खाने-पीने का कुछ सामान अलग से दिया गया। इमिग्रेशन के बाद हम हवाई जहाज़ में पहुँचे तो मोर के पंखों की आकृतियों से सजे सुंदर परिधान पहने परिचारिकाओं ने ‘आई बुआन’ कहकर हमारा स्वागत किया।उनका परिधान साड़ी था, पर पहनने का तरीक़ा भिन्न था।एक घंटे की सुखद यात्रा में एक तमिल फ़िल्म का कुछ अंश देखा, जिसमें नायक हैदराबाद में कोचिंग के लिए आता है, पर नायिका को प्रभावित करने के लिए एक रेस्तराँ में काम पकड़ लेता है।पता नहीं आगे क्या हुआ होगा, पर हमारा गंतव्य आ गया था। कोलंबो हवाई अड्डे पर फूलों की माला से हमारा स्वागत हुआ तथा एक समूह चित्र भी लिया गया।यहीं पर सभी ने एक स्थानीय बैंक से अपनी आवश्यकता के अनुसार भारतीय रुपयों को श्री लंका रुपयों में बदला, एक भारतीय रुपया, सवा तीन श्री लंका रुपयों के बराबर है।
दोपहर के भोजन के बाद श्रीलंका के दक्षिणी प्रांत गाल्ल की यात्रा आरंभ हुई। एसी बस सुविधाजनक थी। लगभग डेढ़ घंटे में हम गाल्ल पहुँच गये। गाल्ल के उनावटुना स्थान पर स्थित रूमास्सला पर्वत को संजीवनी पर्वत के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब हनुमान जी हिमालय के द्रोणगिरी पर्वत से संजीवनी बूटी ला रहे थे, तब उस पर्वत का एक हिस्सा श्रीलंका के गाल्ल के पास रूमास्सला पर्वत के रूप में गिर गया था। इस पर्वत पर पाए जाने वाले पौधे श्रीलंका के अन्य हिस्सों में पाए जाने वाले पौधों से भिन्न हैं, जिसे स्थानीय लोग संजीवनी का अंश मानते हैं।
संजीवनी पर्वत पर पवनपुत्र हनुमान की एक विशालकाय मूर्ति थी। जिसके चरणों पर कई वस्त्र बाँधे गये थे, शायद इस तरह यहाँ लोग मन्नत माँगते होंगे। मूर्ति एक चबूतरे पर स्थित थी, जिसपर सीढ़ियों से चढ़कर जाना था, हमारे समूह में अधिकतर वरिष्ठ नागरिक थे, पर सभी ने दर्शन किए और कई लोगों ने मूर्ति की परिक्रमा भी की।
इसके बाद हम श्वेत रंग के एक भव्य शांति स्तूप को देखने गये। इस शांति स्तूप का निर्माण जापानी बौद्ध भिक्षु निचिदत्सु फ़ूजी द्वारा विश्व शांति के लिए किया गया है। द्वितीय विश्व युद्ध में हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु हमले के बाद उन्होंने शांति के प्रतीक के रूप में दुनिया भर में अस्सी से अधिक शांति स्तूप बनवाये हैं। इस समय वहाँ यूक्रेन और रशिया के मध्य चल रहे युद्ध को रुकवाने के लिए प्रार्थना करने को कहा जा रहा था। युद्ध के भीषण परिणामों के बारे में आगाह भी किया गया था। हमने भगवान बुद्ध के जीवन की चार प्रमुख घटनाओं को चित्रित करती हुई चार विशालकाय मूर्तियों के दर्शन भी किए।
यात्रा के दौरान अमर नामक स्थानीय गाइड श्रीलंका के बारे में कई जानकारियाँ देते जा रहे थे। सिंहली भाषा में नमस्ते को ‘आई बुआन’ कहा जाता है और धन्यवाद को ‘स्तुति’ ! श्रीलंका दक्षिण एशिया में हिन्द महासागर के उत्तरी भाग में स्थित एक द्वीप है, जिसे हिन्द महासागर का मोती या पूर्व का अन्न भण्डार कहा जाता है। भारत के दक्षिण में स्थित यह द्वीप देश भारत से मात्र इक्कतीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कहा जाता है कि श्रीलंका में सवा लाख वर्ष पहले से मानव निवास करते थे। इसका इतिहास प्रागैतिहासिक काल से शुरू होता है, जिसमें अनुराधापुर और पोलोन्नारुवा जैसे प्राचीन साम्राज्यों में सिंहली वंश का शासन था।ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में मौर्य सम्राट अशोक के पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा के आगमन के साथ यहाँ बौद्ध धर्म का आगमन हुआ।
सोलहवीं शताब्दी में यहाँ पुर्तगालियों ने आक्रमण किया और बहुत सारे मंदिरों को तोड़ दिया, जिनकी मूर्तियाँ स्थानीय लोगों ने ज़मीन में अथवा पेड़ों के तनों में छिपाकर रख दीं और सैकड़ों वर्षों के बाद उन मंदिरों का पुनरुद्धार किया गया। 17वीं सदी में यहाँ डच आये और 1802 ईस्वी से अंग्रेजों ने इस पर शासन किया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अन्य कई देशों की तरह 4 फरवरी 1948 को श्रीलंका को भी अंग्रेजों से स्वतंत्रता मिली।पहले इसका नाम सीलोन था, 1972 में देश एक गणराज्य बना और इसका नाम बदलकर लंका किया गया। 'श्रीलंका' नाम 1978 में अपनाया गया। पच्चीस वर्षों तक श्रीलंका में अल्प संख्यक तमिल और बहु संख्यक सिंहल जातीय समूहों के मध्य गृहयुद्ध चलता रहा, जो 19 मई 2009 को समाप्त हुआ। प्रशासकीय रूप से श्रीलंका नौ राज्यों में बंटा हुआ है। ये राज्य कैंडी, अनुराधापुर, जाफ़ना, त्त्रिंकोनमल्ली, कुरुनगल, गाल्ल, उवा, रतनपुर और कोलंबो हैं। इन प्रान्तों में कुल पच्चीस जिले हैं।
माधवानंद जी ने बताया, हिंदू पौराणिक इतिहास के अनुसार श्रीलंका को शिव ने बसाया था। भगवान शिव की आज्ञा से विश्वकर्मा देव ने पार्वती देवी के लिए यहाँ एक स्वर्ण महल बनाया था। ऋषि विश्रवा ने शिव से छल से लंका को माँग लिया था। पार्वती ने शाप दिया कि एक दिन शिव का अंश उस महल को जलायेगा। विश्रवा ने लंकापुरी अपने पुत्र कुबेर को दी, पर रावण ने उसे निकाल कर स्वयं को वहाँ का राजा बनाया। कुबेर रावण के सौतेले भाई थे।
श्रीलंका के अंतर्राष्ट्रीय रामायण अनुसंधान केंद्र और पर्यटन मंत्रालय ने रामायण से जुड़े पचास स्थानों का पता लगाया है। जिनमें से कुछ अशोक वाटिका, राम-रावण युद्ध भूमि, रावण की गुफा, उसका महल आदि हैं। श्रीलंका में बौद्ध और हिंदू धर्म की साझा परंपरा रही है। शिव के पुत्र कार्तिकेय यहाँ के सबसे लोकप्रिय देवता हैं। इनकी पूजा न केवल तमिल करते हैं, बल्कि सिंहली व बौद्ध भी करते हैं। यात्रा प्रबंधक ने बताया, अगले छह दिनों में हमें पाँच विभिन्न स्थानों में रहना है। दिन भर घूमने के बाद शाम को होटल पहुँचना है और अगले दिन नाश्ते के बाद अगले स्थान के लिए रवाना होना है। उन्होंने रास्ते में रामायण से जुड़ी सुंदर कथाएँ सुनाते हुए महामंत्र का जाप व कीर्तन भी करवाया। उन्होंने बताया, हनुमान जी को द्रोणगिरी स्थित संजीवनी पर्वत पर दो बार जाना पड़ा था। एक बार श्री राम व लक्ष्मण दोनों अचेत हो गये थे, तब जाम्बवन्त ने उन्हें भेजा था। दूसरी बार वैद्य सुषेण ने केवल लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी लाने को कहा था। हनुमान चार औषधियाँ लाये थे - विशल्य कर्णी, मृत संजीवनी, संधानी तथा सुवर्ण कर्णी। प्रयोग के बाद जिस स्थान पर औषधियाँ लायी गई थीं, वहीं आज संजीवनी पर्वत है। आज भी वहाँ कई जड़ी-बूटियाँ उगती हैं, जिन पर वैज्ञानिक शोध भी चल रहे हैं। एक किवदंती के अनुसार हनुमान ने बाद में वह शिखर उछाल दिया तो वह कंबोज देश में जाकर उल्टा गिरा।इतनी सारी जानकारी प्राप्त करते हुए हम शाम की चाय के लिए रुके। देर शाम को हम रिज़ौर्ट पहुँच गये।
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