रामायण - मिथक से परे इतिहास की झलक
भाग - ३
आज मंदारा रोजेन रिजॉर्ट में हमारी पहली और अंतिम सुबह है।यह स्थान श्री लंका के याला राष्ट्रीय उद्यान में आता है। सुबह उठने से पूर्व ही छतों पर बंदरों की उछलकूद की आवाज़ें सुनायी देने लगीं थीं। बाहर निकले तो चार-पाँच मोर इधर-उधर उड़ते दिखायी दिये। आम के बगीचों में कच्चे-पक्के नीचे गिरे थे। हमने कई तस्वीरें उतारीं, एक मोर नृत्य की मुद्रा में पंख फैलाए खड़ा था। एक परिचारिका किसी वृक्ष से फूल तोड़ रही थी,सारा वातावरण रामायण में पढ़े अशोक वाटिका वाले प्रसंग की याद दिला रहा था,जब हनुमान ने वाटिका तहस-नहस कर दी थी और त्रिजटा सीता के लिए फूल ले जाती थी।
कल शाम लगभग सात बजे हम कतरगाम पहुँचे थे।यह स्थान श्रीलंका के उवा प्रांत के मोनारागला जिले में स्थित है; जो श्रीलंका के दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र में लोकप्रिय याला राष्ट्रीय उद्यान से सटा हुआ एक तेज़ी से विकसित होता हुआ शहर है। हिंदू इसे कार्तिकेय ग्राम कहते हैं। कतारगाम श्रीलंका के बौद्ध, हिंदू और स्वदेशी वेद्दा, सभी लोगों के लिए एक पवित्र तीर्थस्थल है। दक्षिण भारत के लोग भी वहाँ पूजा करने आते हैं। इस शहर में एक विशाल मंदिर है, जो शिव-पार्वती के पुत्र स्कंद कुमार को समर्पित है। जिसे श्रीलंका के संरक्षक देवताओं में से एक के रूप में जाना जाता है।
होटल में समान आदि रखकर व रात्रि भोजन के पश्चात हम सभी कार्तिकेय के मंदिर के दर्शन के लिए रवाना हुए। हवा शीतल थी और वातावरण में शांति थी। मार्ग में कुछ फलों की दुकानें खुली हुई मिलीं। उन्हें नीचे से ऊपर कलात्मक ढंग से ऐसे सजाया गया था मानो मिठाई की दुकानें हों।हमने गौड़ किया कि यहाँ मंदिरों में फलों को चढ़ाया जाता है।हमारा समूह पहुँचा तो पुजारी व कुछ कर्मियों के अलावा मंदिर में कोई नहीं था। मंदिर के विशाल द्वार से प्रवेश करते ही उसकी भव्यता का अंदाज़ा हो रहा था।सामने विशाल मैदान है।दाँयी तरफ़ एक मस्जिद है। बाँयी ओर एक बौद्ध स्तूप स्थित है। सामने मुख्य मंदिर की दीवार पर मोर और हाथियों की सुंदर आकृतियाँ उकेरी हुई थीं। इस मंदिर के भीतरी कक्ष में मुख्य देवता कार्तिकेय एक यंत्र के रूप में पर्दे के पीछे स्थापित हैं, जिस पर मुरुगन और उनकी दोनों पत्नियों की आकृतियाँ बनी हैं। बाहर पर्दे पर केवल उनके सुंदर चित्र ही देखे जा सकते हैं। जिसमें मध्य में मुरूगन और दोनों और देवसेना व वल्ली के चित्र हैं। निकट ही भगवान गणेश को समर्पित एक मंदिर है। कतारगामा स्थित किरी वेहेरा स्तूप श्रीलंका के उन सोलह पवित्र स्थलों में से एक है जहाँ बुद्ध आये थे। यह स्थान बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म के बीच घनिष्ठ और सुंदर संबंध को दर्शाता है। छठी शताब्दी ईसा पूर्व में देवताओं के सेनापति और प्रसिद्ध युद्ध देवता कार्तिकेय के पूर्ण अवतार राजा महासेना बुद्ध से मिले और उन्होंने त्रिरत्नों में शरण ली। इस मुलाकात के बाद राजा ने बुद्ध की यात्रा के उपलक्ष्य में इस स्तूप का निर्माण कराया। बुद्ध और भगवान मुरुगन के बीच स्थापित इस संबंध ने इस क्षेत्र में बौद्ध और हिंदू भक्तों के बीच घनिष्ठऔर शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को संभव बनाया।यह स्थान विभिन्न पृष्ठभूमियों और धर्मों के लोगों के बीच शांति और सहिष्णुता का संचार करता है।
मंदिर से कुछ दूरी पर माणिक्य गंगा या रत्नों की नदी नामक एक पवित्र स्नान स्थल है। स्थानीय निवासियों का मानना है कि इसमें स्नान करने से व्यक्ति के सभी रोग दूर हो जाते हैं क्योंकि इसमें रत्नों की प्रचुर मात्रा होती है और जंगल में बहने वाली नदी के किनारे लगे पेड़ों की जड़ों के औषधीय गुण भी इसमें समाहित होते हैं।
आज सुबह नाश्ते के बाद हम सभी आज के पहले पड़ाव ‘रावण एला या प्रपात’ के लिए रवाना हुए।कतरगाम से लगभग तीन घंटे की यात्रा के बाद हम वहाँ पहुँचे। कहा जाता है रावण ने सीता माँ को इस झरने के पीछे स्थित गुफाओं में छिपा दिया था, जिसे अब रावण एला गुफा के नाम से जाना जाता है। उस समय यह गुफा घने जंगलों से घिरी हुई थी। यह भी माना जाता है कि सीता माँ इस झरने के जल से बने कुंड में स्नान करती थीं। यह स्थान एक पहाड़ी पर स्थित है और झरने के निकट तक जाने के लिए मार्ग तथा सीढ़ियाँ बनी हैं। दूर ऊँचे पर्वत से गिरता हुआ जल प्रपात बहुत आकर्षक लग रहा था। रावण जलप्रपात से थोड़ी ही दूरी पर, रावण गुफा स्थित है। गुफा तक पहुँचने के लिए चट्टान पर खुदी हुई लगभग सात सौ सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं।हमने दूर से ही उस गुफा के दर्शन किए। गुफा के निकट ही एक सुंदर मंदिर भी है।
हमारा अगला पड़ाव था श्रीलंका का सुंदर पहाड़ी शहर नुवारा एलिया, इसका शाब्दिक अर्थ है रोशनी का शहर ! नुवारा एलिया औपनिवेशिक-युग के आवासों, हरे-भरे चाय बागानों और ठंडी जलवायु के कारण जाना जाता है। लगभग 6,128 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस शहर में रामायण में वर्णित अशोक वाटिका है, जहाँ सीता माँ को बंदी बना कर रखा गया था।श्रीलंका में ऐसे पाँच स्थान हैं, जहाँ सीता माँ को रखा गया था। हम वहाँ पहुँचे तो वर्षा हो रही थी, तापमान पंद्रह डिग्री था।सीता अम्मन मंदिर में सीता माता के सुंदर विग्रह के दर्शनों का अवसर मिला। इस मंदिर को "सीता एलिया" के नाम से भी जाना जाता है, और इसके पास एक नदी भी है जिसके बारे में कहा जाता है कि सीता माता यहाँ स्नान करती थीं। मंदिर में सीता, राम, लक्ष्मण और हनुमान की पाँच हज़ार वर्ष पुरानी मूर्तियाँ हैं। वहाँ की प्रथा के अनुसार समूह की महिलाओं ने उनके सुंदर विग्रह का आलिंगन किया। यहाँ का मुख्य आकर्षण एक चट्टान पर हनुमानजी के पैरों के निशान हैं।
इसके बाद हमारी बस गायत्री पीठम पहुँची, जहाँ गायत्री देवी का मंदिर है। यह स्थान श्रीलंका का एक आध्यात्मिक केंद्र है, जिसे श्री लंकाधीश्वर मंदिर भी कहा जाता है। यह संत मुरुगेसु सिद्धार द्वारा स्थापित किया गया था और यहाँ देवी गायत्री और लंकाधीश्वरके रूप में भगवान शिव की पूजा की जाती है। इस स्थान का रामायण से भी गहरा संबंध है, क्योंकि माना जाता है कि यहीं पर रावण के पुत्र इंद्रजीत ने भगवान शिव की तपस्या की थी। युद्ध में जाने से पहले इंद्रजीत को भगवान शिव ने आशीर्वाद दिया था।मंदिर में 108 'बाणलिंग' स्थापित हैं, जिन्हें संत मुरुगेसु महर्षि जर्मनी से वापस लाए थे।हमने वहाँ एक संग्रहालय में संत के जीवन से जुड़ी कई वस्तुओं व चित्रों को देखा।
गायत्री पीठम के बाद हम उस स्थान पर पहुँचे जहाँ देवी सीता ने अग्नि परीक्षा दी थी। सीता माता की अग्नि परीक्षा का स्थान श्रीलंका के दिवुरुम्पोला में माना जाता है। इस स्थान को 'शपथ का स्थान' भी कहते हैं।दिवुरुम्पोला नुवारा एलिया से लगभग 18 किलोमीटर दूर है। इस स्थान पर एक मंदिर है, जिसे "दिवुरुम्पोला प्राचीन मंदिर" कहा जाता है। इस मंदिर परिसर में एक विशेष स्थान को चिन्हित किया गया है, जहाँ सीता माता ने अग्निपरीक्षा दी थी।यह स्थल हिंदू और बौद्ध दोनों धर्मों की सांस्कृतिक छाप को दर्शाता है और श्रीलंका के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों में से एक है। आज भी स्थानीय लोग विवाद सुलझाने के लिए इस मंदिर में आकर सौगंध दिलवाते हैं।इस परिसर में एक बोधिवृक्ष है, जो बोध गया के उसी श्री महाबोधि वृक्ष का वंशज माना जाता है जिसके नीचे बैठकर भगवान बुद्ध को परम ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। निकट ही एक बौद्ध स्तूप भी था।यहाँ हमने सम्राट अशोक की पुत्री संघमित्रा की एक सुंदर प्रतिमा के दर्शन भी किए।
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