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बुधवार, जून 24

योगी

योगी 

प्रमाद की नींद पर 
कभी सुदिन खड़ा नहीं होता 
यह सही है, जब जाग जाए मन 
तभी उसके लिए सवेरा होता !

वे  विलग हैं,अनोखे हैं 
 स्वार्थ उन्हें नहीं चलाता
उनकी ऊर्जा का स्रोत अहंकार से नहीं 
परमात्मा से है आता !

भय से भाग खड़े हों
या क्रोध से करें सामना 
यह सामान्य जन करते होंगे 
विपदा आने पर, 
वे योगारूढ़ हो 
शांत मन से करते हैं मुकाबला 
भीतर ठहर कर !

न लाभ की चिंता है उन्हें 
लोभ नहीं डुलाता
निमित्त बने हैं किसी के, कर्ता वही है 
 उसका काम करना भाता !

ध्यान और समर्पण की गंगा 
जहाँ दिन-रात बहती है, 
जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति के पीछे 
तुरीया स्वतः ही रहस्य खोल देती है !
अँधेरे में जग जल रहा हो 
जब अज्ञान के हाथों 
ज्ञान की आँख ही उसको 
बचा सकती है !  

शुक्रवार, जनवरी 24

ज्ञान और अज्ञान


ज्ञान और अज्ञान



असीम है ज्ञान और अज्ञान की भी सीमा नहीं है मानव के सह लेता है जन्म और मृत्यु का दुःख काट लेता है वृद्धावस्था भी रो-झींक कर सामना करता है रोग का पर क्या कहें दुःख के उस भंडार का जो लिए फिरता है अपने कांधों पर उस क्रोध का, जो जलाता है खुद को और झुलसाती है जिसको आंच दूसरों को भी ईर्ष्या की लपटें जो खुद ही सुलगाता है भीतर जब चीजें जुडी हैं आपस में इस तरह कि एक चींटी भी दे रही है योगदान इस सृष्टि में तो वह अहंकार के हाथी पर चढ़ा गिर कर धूल फांकता है न जाने किस अज्ञात भय से कँपता है उसका मन घृणा का बीज डालता है स्वयं ही फिर प्रेम के फलों की उम्मीद बाँधता है समझदारी की आशा कौन करे विवेक को सुलाकर मदहोश हुआ चंद घड़ियाँ चैन से बिताता है पाना चाहता है सारा संसार बिना श्रम लेकर असत्य का सहारा भी ...