शुक्रवार, अगस्त 4

ख़ुद को ही

ख़ुद को ही 


कोई ओट दे देगा 

उढ़का देगा बाती 

या तेल भर देगा दीपक में 

पर जलना तो ख़ुद को ही पड़ता है !

 

कोई मार्ग दिखा देगा 

लक्ष्य की पहचान दे देगा 

या पाथेय भी दे देगा 

पर चलना तो ख़ुद को ही पड़ता है !


कोई और नहीं उठा सकता 

किसी के काँधे का बोझ 

न ही उतार सकता है 

क्योंकि गहन है कर्म की गति 

अदृश्य है वह भार 

स्वयं ही उतारना है 

हल्का होना है 

क्योंकि उड़ना तो ख़ुद को ही पड़ता है !


कोई पता बता देगा घर का 

यदि भूल गया है मन 

भटकते हुए इस चक्रव्यूह  में 

उसकी याद दिला देगा 

पर मुड़ना तो ख़ुद को ही पड़ता है !


5 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०६-०८-२०२३) को 'क्यूँ परेशां है ये नज़र '(चर्चा अंक-४६७५ ) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर...
    कुछ भी पाना है तो करना तो खुद ही पड़ता है।

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