बुधवार, जून 24

योगी

योगी 

प्रमाद की नींद पर 
कभी सुदिन खड़ा नहीं होता 
यह सही है, जब जाग जाए मन 
तभी उसके लिए सवेरा होता !

वे  विलग हैं,अनोखे हैं 
 स्वार्थ उन्हें नहीं चलाता
उनकी ऊर्जा का स्रोत अहंकार से नहीं 
परमात्मा से है आता !

भय से भाग खड़े हों
या क्रोध से करें सामना 
यह सामान्य जन करते होंगे 
विपदा आने पर, 
वे योगारूढ़ हो 
शांत मन से करते हैं मुकाबला 
भीतर ठहर कर !

न लाभ की चिंता है उन्हें 
लोभ नहीं डुलाता
निमित्त बने हैं किसी के, कर्ता वही है 
 उसका काम करना भाता !

ध्यान और समर्पण की गंगा 
जहाँ दिन-रात बहती है, 
जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति के पीछे 
तुरीया स्वतः ही रहस्य खोल देती है !
अँधेरे में जग जल रहा हो 
जब अज्ञान के हाथों 
ज्ञान की आँख ही उसको 
बचा सकती है !  

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक चर्चा मंच पर चर्चा - 3743 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  2. वे विलग हैं,अनोखे हैं
    स्वार्थ उन्हें नहीं चलाता
    उनकी ऊर्जा का स्रोत अहंकार से नहीं
    परमात्मा से है आता !

    वाह अनिता जी , योगी को बहुत ही सुंदर ढंग से परिभाषित किया आपने |
    कदाचित, ये वही दिव्य आत्माएं हैं जो ईश्वर से सीधा संवाद करती हैं | इतनी भावपूर्ण रचना जो बहुत ही सराहनीय है , के लिए आभार और शुभकामनाएं|

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    1. सही कहा है आपने रेणु जी, आपकी भी अध्यात्म में गहरी रूचि है ऐसा प्रतीत होता है,सुंदर प्रतिक्रिया के लिए स्वागत व आभार !

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