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गुरुवार, अगस्त 11

ऐसा कोई क्यों करेगा


लन्दन के दंगों को किसी तरह रोका गया तो हिंसा की आग ब्रिटेन के दूसरे शहरों में फ़ैल रही है. ईश्वर की बनाई इस सुंदर दुनिया के किसी भी कोने में घटी हिंसा की वारदातें एक स्वच्छ सतह पर काले धब्बे की तरह चुभती हैं और भीतर कई सवालों का जन्म होता है....


ऐसा कोई क्यों करेगा 

वहशी, कुछ दरिंदे, पागल
हाथ में मौत का सामान लिए
दाखिल होते हैं लोगों के हुजूम में
और देखते-देखते भडक उठते हैं शोले
आतंक फ़ैल जाता है,
कुचल दिए जाते हैं हंसते-खेलते जीवन...
अमानवीय कृत्य करने वाले वे भी
जन्मे तो थे इसी धरती पर
खेले थे वे भी किसी के आंगन में
हो सकता है न मिली हो उन्हें माँ की गोद
या स्नेह पिता का
कुंवारी माँ की सन्तान हों
या अलग हो गए हों उनके जनक
उनके जन्म के पूर्व
या फिर पले हों वे छोटी सी आयु से
अकेले सड़कों पर
या बंद घर में, कम्प्यूटर पर गेम खेलते
जहां खून के छींटे पड़ने पर मिलते हैं पॉईंटस्
या छोड़ दिए गए हों
माता-पिता के काम पर जाने के बाद अकेले
टीवी पर हिंसा के दृश्य देख-देख हुए हों बड़े
गोली चलाना सीखा हो शायद पहली बार
 किसी खिलौना बंदूक से
जो माँ-बाप ले आए हों उनके दूसरे जन्म दिन पर
और फिर हर वर्ष एक नई पिस्तौल
पूर्व से अधिक विकसित
हिंसा की ट्रेनिंग ले ली हो उन्होंने
गली-मोहल्लों में
बम बनाना, आगजनी सीखी हो दादा लोगों के साये में
या फिर सताया गया हो उनका कोई परिचित (निर्दोष)
पुलिस के हाथों....
वे देखना चाहते हों असली आग की लपटें
लोगों के चेहरे पर भय
स्क्रीन पर होते दृश्य अब उत्तेजित न कर पाते हों उन्हें
या फिर याद आए हों उन्हें हिंसा के वे कारनामे
जिन्हें करके अमर हो गए कुछ सिरफिरे
कैसे विकृत हुआ होगा उनके मस्तिष्क
जिनमे हिंसा का जहर भरा गया होगा धीरे-धीरे
मरती गयी होगी उनकी आत्मा
दफन हो गयी होगी उस जगह
जहां से कोई आवाज नहीं आती...
नहीं तो कोई ऐसा क्यों करेगा...?