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सोमवार, जून 22

घटे जागरण

घटे जागरण 

कंस ने द्वेष किया कृष्ण से 
फिर उसी को मन में बसाया 
जिस पर भी रोष किया मानव ने 
अंतर को उसी का घर बनाया !
जिस मन की गहराई में 
सारा ब्रह्मांड बसता है 
पादप, पंछी, पशु, गोलोक तक का विस्तार है 
चाहे यदि जो अनंत की 
उड़ान भर सकता है 
वह व्यर्थ ही क्या नहीं 
छोटा सा अहंकार लिए फिरता है !
एक सूक्ष्म विषाणु जिसका अस्त्र बना 
संहारक है जो बढ़ते हुए लोभ का 
जग को गहरी नींद से जगाया है 
प्रकृति पर होते अत्याचार 
के प्रति चेताया है 
गणेश को पूजने वाला समाज 
बना है हाथी का हत्यारा 
बेदखल कर पशुओं को 
उनके आश्रयों को हथिया लिया 
किया गया है विवश भीतर झाँकने को 
यदि जीवन ही न रहा तो 
क्या रह जायेगा उसे मांगने को !
सुख आशा और दुःख निराशा में 
कोई चुनाव नहीं है यहाँ 
एक के साथ दूजा बिन मांगे चला आता 
काश ! यह अटूट सत्य नजर आ जाता ! 


रविवार, सितंबर 2

कृष्ण जन्म


कृष्ण जन्म 

यह तन कारागार है अहंकार है कंस
पञ्च इन्द्रियाँ संतरी भीतर बंदी हंस !

बुद्धि हमारी देवकी मन-अंतर वसुदेव
इन दोनों का मिलन बना आनंद का गेह !

प्रहरी सब सो गए इन्द्रियाँ हुईं उपराम
हृदय बुद्धि में खो गया भीतर प्रकटे श्याम !

अविरति है कालिंदी पार है गोकुल धाम
मिटा मन का राग तो खुद आया घनश्याम !