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शुक्रवार, जून 7

एक कतरा प्रेम

एक कतरा प्रेम 


बचपन में हम झगड़ते हैं 

यौवन में कुछ न कुछ पकड़ते हैं 

वह तो बाद में पता चलता है 

हक़ीक़त में जिसकी तलाश है 

वह न झगड़ने से मिलती है

 न पकड़ने से !


वह तो हवाओं में 

झूमने की कला है !


बारिश में भीगने 

आँखों से बतियाने 

हाथ में हाथ डाले 

हरी घास पर 

डोलने में हर बार 

भीतर कुछ पला है !


जो न था पास, जब

कई अपने पीछे छूट गये 

कुछ सपने बेवजह ही टूट गये !

 

सत्य है राम का नाम

 सुना न जाने कितनी ही बार 

 पर क्यों फुला लिया मुँह 

जब आये थे राम प्रेम बनकर

जीवन पथ पर  राह दिखाने !


जिस प्रेम का एक कतरा भी 

छू जाये मन को  

तो गूँजने लगते हैं मीठे तराने !


उस एक के लिए ही 

हर झगड़ना था शायद 

उसे ही पकड़ना था 

अब जाना है राज दिल ने 

यूँ ही ‘मैं’ का वह अकड़ना था  !




शनिवार, नवंबर 8

ठहर गया है यायावर मन

ठहर गया है यायावर मन


पलक झपकते ही तो जैसे
बचपन बीता बीता यौवन,
सांझ चली आई जीवन की
कंप-कंप जाती दिल की धड़कन !

जाने कब यह पलक मुंदेगी
किस द्वारे अब जाना होगा,
मिलन प्रभु से होगा अपना
या फिर लौट के आना होगा !

जो भी हो स्वीकार सभी है
आतुरता से करें प्रतीक्षा,
बोरा-बिस्तर बाँध लिया है
ली विदा दी परम शुभेच्छा !

मन में एक चैन पसरा है
कुछ पाने की आशा टूटी,
ठहर गया है यायावर मन
मंजिल वाली भाषा छूटी !

जीवन जैसा मिला था इक दिन
वैसा सौंप निकल जाना है,
एक स्वप्न था बीत गया जो
कह धीमे से मुस्काना है !

जिसको भी अपना माना था
यहीं मिला था यहीं रहेगा,
मन यह जान हुआ है हल्का
 क्या था अपना जो बिछड़ेगा !  

लीला ही थी इक नाटक था
जीवन का जो दौर चला है,
रोना-हँसना, गाना, तपना
एक स्वप्न सा आज ढला है !






गुरुवार, नवंबर 14

बाल मजदूर

आज भी देश के कई हिस्सों में बच्चे अभिशप्त हैं खतरनाक रोजगार में काम करने के लिए, बाल दिवस पर जहाँ सक्षम बच्चे खुशियाँ मना रहे हैं, उन के लिए इस दिन का कोई महत्व नहीं है.

बाल मजदूर



वह बूढ़े होते इंसान की तरह भयभीत है
नहीं जाना तितलियों के पीछे भागना
रूठना, मचलना याद नहीं
याद हैं वे दंश, वे तीखे अनुभव
जिनकी मार सही है रोज हर रोज
जब नैतिकता शरमायी होगी
चीखा होगा बचपन
 रोया होगा फूल कोई
पंछी भी चुपचाप उड़ गया होगा
पर न देखा माँ की ममता ने
बाप के साये ने
वह पल जिसमें किसी की मृत्यु हुई थी
जगत चलता रहा अलग-थलग
घिसटता रहा कोई अपनी ही ऊँगली थामे
चल पड़ा एकाकी सूनी राह पर
ठोकर खायी
नहीं देखा किसी ने, न पूछा कुछ
वह बूढ़ा हो गया असमय
दुनिया वंचित रही एक यौवन से
बिखरे मोतियों को न जोड़ा किसी ने
न बनाया हार, न पहना गले में !