महाकुम्भ के समापन पर
कल-कल छल-छल बहती गंगा
यमुना जिसमें आ कर मिलती,
यही त्रिवेणी है प्रयाग की
छुपी है जिसमें सरस्वती !
इस अति पावन तीर्थराज में
कुम्भ पर्व की शोभा न्यारी,
हरिद्वार, नासिक, प्रयाग में
तब उज्जैन की आती बारी !
देव उतर आते हैं भू पर
सूर्य, चन्द्र, गुरु भी मिलते,
घुल जाता है मानो अमृत
लाखों अंतर भाव से खिलते !
सूर्य मकर राशि में होता
दिग दिगांतर हुए प्रफ्फुलित,
आए दूर से जन सैलाब
श्रद्धा के हों दीप प्रज्ज्वलित !
भगवद गाथा संत सुनाते
अद्भुत साधुजन आते हैं,
नव इतिहास गढ़ा जाता है
मिल कर सारे कुम्भ नहाते !
एक अजूबा है धरती का
भारत भू का पर्व निराला,
नागा साधुओं के अखाड़े
इक तिलस्म सा ज्यों रच डाला
बढ़िया भाव आदरेया-
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति-
जय जय गंगे-
आभार !
हटाएंशुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .साफ़ चुटीला सन्देश .महा कुम्भ का सटीक विवरण .
जवाब देंहटाएंआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति मंगलवारीय चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
हटाएंभगवद गाथा संत सुनाते
जवाब देंहटाएंअद्भुत साधुजन आते हैं,
नव इतिहास गढ़ा जाता है
मिल कर सारे कुम्भ नहाते !
बहुत ही सुन्दर चित्रांकन कुम्भ का
सादर !
शिवनाथ जी आभार !
हटाएंकविता में महाकुम्भ के बारे में इतनी जानकारी ....................वाह .........
जवाब देंहटाएंकुंवर कुसुमेश जी, स्वागत व आभार !
हटाएंबहुत उम्दा प्रस्तुति आभार
जवाब देंहटाएंआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
अर्ज सुनिये
आप मेरे भी ब्लॉग का अनुसरण करे
महाकुम्भ का महाकाव्य लिखा है ...
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुति ...
दिगंबर जी, आभार !
हटाएंगागर में सागर भर दिया अनीता जी आपने तो ,
जवाब देंहटाएंअपने आप में अजूबा ही है विश्व में कुम्भ-मेला
अद्भुत-रचना.....सुंदर........
साभार......
अदिति जी स्वागत है..
हटाएंकुम्भ का सुंदर और विस्तृत वर्णन .....वाह
जवाब देंहटाएंमेरा ब्लॉग आपके स्वागत के इंतज़ार में
स्याही के बूटे
शिखा जी, स्वागत व आभार !
हटाएंएक अजूबा है धरती का
जवाब देंहटाएंभारत भू का पर्व निराला,
नागा साधुओं के अखाड़े
इक तिलस्म सा ज्यों रच डाला
बस एक ही अफ़सोस है :काश गंगा पावन (पाक जल ,शुद्ध पेय जल भी लिए होती ,अप्रदूषित होती ,मिला न ढोती )
शुक्रिया आपकी टिपण्णी के लिए .
सचमुच ही यह विश्व का सबसे बड़ा और सबसे अनुपम मेला है !
जवाब देंहटाएंप्रतिभा जी, आपने सही कहा है
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