नए वर्ष की दास्तान
कैसे कहें शुभ हो नव वर्ष
जब की बिछी है सामने
जाते हुए वर्ष की खून से लथपथ देह
पिछले वर्ष भी तो यही कहा था
पर नहीं थमा आतंक
रुका नहीं मौत का तूफान...
लील गया
कभी निर्दोष स्कूली बच्चों को
लुटती रही अस्मत मासूमों की
कभी राजधानी की सड़कों पर
इतना बेरहम हो गया इंसान !
आज कौन किसकी सुनता है ?
दी, ली, जाती हैं शुभकामनाएँ
पहले से कहीं ज्यादा पर
पहले से कहीं ज्यादा पर
कौन किसको सुनता है ?
बादल गरज कर चले गए, मोर नहीं नाचे
कौन रुकता है कूक कोकिल की सुनने
सड़क पर खून से सने व्यक्ति की
सुनी नहीं पुकार जब किसी ने
कान नहीं दिए पड़ोसी ने
जब मचता रहा हाहाकार...
नहीं सुनती जनता भी जब सच की आवाज
तो नहीं ही सुनते नेता बैठकर
होता जब अत्याचार...
बदल जायेगा कैलेंडर आधी रात को
पर क्या बदल पायेगा नसीब हम मानवों का
जो बने हैं दुश्मन अपनी ही जान के
तो कैसे कहें शुभ हो नव वर्ष...
प्रतीक्षा है सूर्योदय की... नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ....
जवाब देंहटाएंसंध्या जी, आपने सही कहा है, सूर्योदय होगा और अँधेरा मिटेगा...आपको भी नए वर्ष के लिए मंगलकामनाएँ !
हटाएंनूतन वर्षाभिनंदन मंगलकामनाओं के साथ.
जवाब देंहटाएंरचना जी, आपको भी नया वर्ष मुबारक हो !
हटाएंअनीता जी बहुत गहन कटाक्ष करती और झकझोरती है ये पोस्ट......वक़्त बीतता चला जाता है और हम बदलने को तैयार नहीं हो रहे........इससे पहले की बहुत देर हो जाये हमे जागना ही होगा।
जवाब देंहटाएंफिर भी कहना तो पड़ेगा ही ..आस है तो सांस है..नव वर्ष की समस्त शुभकामनाएं ...
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