कान्हा की हर बात निराली
यमुना तट पर वृंदावन में
पुष्पित वृक्ष कदम्ब का
सुंदर,
अति रमणीक किसी कानन में
जिस पर बैठे हैं मधुरेश्वर
!
पीताम्बर तन पर धारे हैं
चन्दन तिलक सुगन्धित माला,
मंद हास से युक्त अधर हैं
कुंडल धारे वंशी वाला !
गोपों ग्वालों संग विचरते
गउओं ने जिनको घेरा है,
राधा प्रिय गोपी जन वल्लभ
जिनके उर सुख का डेरा है !
कालिय नाथ नथा सहज ही
गिरधर मोहन माखन चोर,
जिसने मारे असुर अनेकों
जन-जन बांधी उर की डोर !
बादल भी रुक कर सुनते हैं
कान्हा की मुरली का गीत,
हिरन, मयूर चकित हो तकते
थम जाता कालिंदी नीर !
सुन्दर व सार्थक रचना ..
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
दिल को छूती बहुत ही मनभावन अभिव्यक्ति..बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत.
जवाब देंहटाएंशांति जी, कैलाश जी व रचना जी आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत मानवीय लगता है कृष्ण का जीवन. इसीलिये कान्हा बहुत प्रिय हैं मुझे.
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