कृष्ण जन्माष्टमी पर
काल सुहाना बन आया था
भादों की अष्टमी आयी,
जगी दिशाओं में भी आशा
मंगलमयी भूमि हर्षाई !
नदियाँ भी आनंद से भरीं
सरवर खिले उत्प्लों से थे,
अग्नि प्रज्वलित हुई
प्रसन्न हो,
वायु भरी स्नेह सुरभि से !
कारागार में जन्मे थे स्वयं
मुक्त किया जग भव बन्धन से
था नक्षत्र रोहिणी पावन
प्रकटे रस नन्द नन्दन थे !
थी मध्य रात्रि घोर अँधेरा
बनकर आये ज्यों दिनमान,
अद्भुत रूप धरा कृष्णा ने
कोमल काया कमल समान !
कानों में झिलमिल कुंडल
मोर पंख केशों में सज्जित,
अंग-अंग है सुंदर जिसका
ऐसे श्यामल महिमा मंडित !
दिव्य जन्म व कर्म दिव्य
हैं
मुरली मनोहर मधुमय कृष्णा,
मिलन और विरह दोनों में
याद भी उनकी सुख स्वरूपा !
सचमुच निराले हैं यह भगवान और अच्छी है आपकी कविता.
जवाब देंहटाएंसुंदर गीत से कान्हा का स्वागत. जन्माष्टमी कि बहुत बहुत शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक रचना ..
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
बहुत ही मनहारी चित्रण...बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंनिहार जी, रचना जी, शांति जी व कैलाश जी आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंमनभावन चित्रण।
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