हम तो घर में रहते हैं
हम तो घर में रहते हैं
जग
की बहुत देख ली हलचल
कहीं
न पहुँचे कहते हैं,
पाया
है विश्राम कहे मन
हम
तो घर में रहते हैं !
जिसके
पीछे दौड़ रहा था
छाया
ही थी एक छलावा,
घर
जाकर यह राज खुला
माया
है जग एक भुलावा !
कदम
थमे तब दरस हुआ
प्रीत
के अश्रु बहते हैं,
रूप
के पीछे छिपा अरूप
उससे
मिलकर रहते हैं !
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 08 - 10 - 2015 को चर्चा मंच पर
जवाब देंहटाएंचर्चा - 2123 में दिया जाएगा
धन्यवाद
सुन्दर शब्द रचना ........... आभार
जवाब देंहटाएंhttp://savanxxx.blogspot.in
जिसके पीछे दौड़ रहा था
जवाब देंहटाएंछाया ही थी एक छलावा,
घर जाकर यह राज खुला
माया है जग एक भुलावा !
...एक शाश्वत सत्य जिसे समझने में एक उम्र गुज़र जाती है...बहुत सुन्दर
मोतियों को चुना ..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंयशोदा जी, सावन जी, कैलाश जी, प्रतिभा जी व अमृता जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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