बापू की पुण्य स्मृति में
रामनाम
में श्रद्धा अटूट, सबका ध्यान सदा रखते थे
माँ
की तरह पालना करते, बापू सबके साथ जुड़े थे !
सारा
जग उनका परिवार, हँसमुख थे वे सदा हँसाते
योग
साधना भी करते थे, यम, नियम दिल से अपनाते !
बच्चों
के आदर्श थे बापू, एक खिलाड़ी जैसा भाव
हर
भूल से शिक्षा लेते, सूक्ष्म निरीक्षण का स्वभाव !
निर्धन
के हर हाल में साथी, हानि में भी लाभ देख लें
सोना,
जगना एक कला थी, भोजन नाप-तोल कर खाते !
छोटी
बातों से भी सीखें, हर वस्तु को देते मान
प्यार
का जादू सिर चढ़ बोला, इस की शक्ति ली पहचान !
समय
की कीमत को पहचानें, स्वच्छता से प्रेम बहुत था
मेजबानी
में थे पारंगत, अनुशासन जीवन में था !
पशुओं
से भी प्रेम अति था, कथा-कहानी कहते सुनते
मितव्ययता
हर क्षेत्र में, उत्तरदायित्व सदा निभाते !
मैत्री
भाव बड़ा गहरा था, पक्के वैरागी भी बापू
थी
आस्था एक अडिग भी, बा को बहुत मानते बापू !
विश्राम
की कला भी सीखी, अंतर वीक्षण करते स्वयं का
एक
महान राजनेता थे, केवल एक भरोसा रब का !
अनासक्ति
योग के पालक, परहित चिन्तन सदा ही करते
झुकने
में भी देर न लगती, अड़े नहीं व्यर्थ ही रहते !
करुणा
अंतर में गहरी थी, नव चेतना भरते सबमें
प्रेम
करे दुश्मन भी जिससे, ऐसे प्यारे राष्ट्रपिता थे !
बापू जी की पुण्य स्मृति में बहुत सुन्दर नायाब रचना समर्पित करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना
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जवाब देंहटाएंकरुणा अंतर में गहरी थी, नव चेतना भरते सबमें
प्रेम करे दुश्मन भी जिससे, ऐसे प्यारे राष्ट्रपिता थे !
राष्ट्रपिता को नमन.
कविताजी, रचना जी व ओंकार जी, स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंबस नमन बापू |
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंवाह! अनीता जी ,बहुत खूबसूरत सृजन।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत बहुत आभार श्वेता जी!
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