बन जाता वह खुद ही मस्ती
मस्ती की है प्यास सभी को
हस्ती की तलाश सभी को
मस्ती जो बिछड़े न मिलकर
हस्ती जो बोले बढ़चढ़ कर
दोनों का पर जोड़ नहीं है
इस सवाल का तोड़ नहीं है
हस्ती मिटे तो मस्ती मिलती
यह सूने अंतर में खिलती
हस्ती तो है एक उसी की
मस्ती जिसके नाम में बसती
मिटा दी जिसने खुद की हस्ती
बन जाता वह खुद ही मस्ती
सुंदर रचना......बधाई|
जवाब देंहटाएंआप सभी का स्वागत है मेरे ब्लॉग "हिंदी कविता मंच" की नई रचना #वक्त पर, आपकी प्रतिक्रिया जरुर दे|
http://hindikavitamanch.blogspot.in/2017/07/time.html
जवाब देंहटाएंसत्य कहा आदरणीय ,जीवन प्रसन्न चित्त होकर व्यतीत करने वाला मानव ही अपनी हस्ती क़ायम कर सकता है सुन्दर रचना आशाओं से भरी।
आभार "एकलव्य"