नई भोर
फिर भोर हुई
फिर कदम उठे
फिर अंतर उल्लास जगा
रस्तों पर हलचल मन के
बीता पल जिसमें तमस घना
फिर आशा खग ने पर तोले
उर प्रीत भरी वाणी बोले
लख जग भीगा अंतरमन
प्राणों में नव संचार भरे
कुसुमों ने फिर महकाया वन
पलक झपकते कहीं खो गयी
घोर निशा का हुआ अंत
भीतर लेकर कुछ लक्ष्य नये
नई भोर आयी जीवन में
उर आतुर करने को स्वागत
जाने क्या लाया है आगत
काल चक्र ही तो है जो कभी निराश नहीं होने देता
जवाब देंहटाएंक्यों है ना?
सही कहा है आपने, कलयुग के बाद सतयुग को आना ही है..रात्रि के बाद उषा को..मानव मन में भी तमस, रजस और सत का क्रम चलता रहता है..धैर्य और श्रद्धा बनी रहनी चाहिए.
हटाएंबहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !
जवाब देंहटाएंभोर की रश्मि का संदेश आशा ही ले कर आता है ..
जवाब देंहटाएंतम की निराशा दूर होती है उल्लास भर जाता है ... बहुत ही सुंदर भावपूर्ण लिखा है ...
स्वागत व आभार दिगम्बर जी !
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