शनिवार, मई 12

मातृ दिवस पर


माँ

जीवन की धूप में
छाया बन चलती है,
दुविधा के तमस में
दीपक बन जलती है !

कहे बिना बूझ ले
अंतर के प्रश्नों को,
अंतरमन से सदा
प्रीत धार बहती है !

बनकर दूर द्रष्टा
बचाती हर विपद से,
कदम-कदम पर फूँक
हर आहट पढ़ती है !

छिपे हुए काल में
भविष्य को गढ़ती है,
माँ का हृदय विशाल 
सारा जग धरती है !



16 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १४ मई २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

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  2. माँ से इतर जान है ... उससे पार क्यों पा सका है ...
    वो जीवन है ... सृजनकर्ता है ... सब कुछ है ...

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 12 मई 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  4. बहुत बहुत आभार यशोदा जी !

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  5. माँ हीं जीवन, माँ हीं दर्पण,
    माँ से हीं संसार है..
    माँ से उत्तम ना शब्द कोई,
    ना स्पर्श बड़ा ना प्यार है..



    मां तो मां है...

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