रविवार, अगस्त 29

अद्भुत बड़ी कृष्ण की लीला


अद्भुत बड़ी कृष्ण की लीला

मथुरा रोयी होगी उस दिन 

कान्हा चले जब यमुना पार,

जिस धरती पर हुए अवतरित

 दे नहीं पायी उन्हें दुलार !


अभी तपस्या की बेला है 

बारह वर्षों की प्रतीक्षा,

लौट करेंगे कृष्ण किशोर

कंस के कृत्य की समीक्षा !


अभी तो गोकुल जाते कान्ह 

नन्द, यशोदा को हर्षाने,

ग्वालों, गैयों, साथ खेलने

संग गोपियों रास रचाने !


माखन चोरी, मटकी फोड़ी

असुर-वध किये  नित नव लीला,

मनहर नृत्य, बाँसुरी वादन

ब्रज वासी कान्हा रंगीला !


पलक झपकते बीता बचपन

 मथुरा जाने का दिन आया,

तड़पा हर ब्रज वासी का उर

नन्द यशोदा को तड़पाया !


राधा की आँखें बरसीं थीं 

विरहा की पीड़ा थी भारी,

अद्भुत बड़ी कृष्ण की लीला,

 अब तक सारी दुनिया वारी !




23 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर रचना !! श्री कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनायें !!

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  2. बहुत सुन्दर ...... कृष्ण लीला अपरम्पार ...

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  3. आपकी लिखी रचना सोमवार 30 ,अगस्त 2021 को साझा की गई है ,
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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  4. सचमुच, श्रीकृष्ण का सारा जीवन ही अद्भुत लीलाओं से भरा पड़ा है जो हम सामान्य मनुष्यों की समझ से बाहर की बात है।

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  5. अनुपम जी, संगीता जी व मीना जी स्वागत व आभार !

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  6. सच में अद्भुत ही तो है कृष्ण-लीला । अति जीवंत चित्रण । हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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  7. अप्रतिम अति सुंदर रचना।

    सादर।

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  8. सजीव चित्रण करती उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ... शुभ जन्माष्टमी

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  9. माफ़ी चाहती हूँ दी कल प्रतिक्रिया नहीं कर पाई रचना छूट गई थी।
    सादर

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  10. वाह!!!!
    कृष्ण लीला का अद्भुत एवं अप्रतिम वर्णन
    लाजवाब।

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  11. आदरणीया मैम, बहुत ही सुंदर व भावपूर्ण रचना। वैसे मुझे कान्हा जी की सारी लीलायें बहुत प्यारी लगतीं हैं पर ब्रज छोड़ कर जाने की लीला बहुत ही करुण लगती है, विशेष कर माँ यशोदा और राधा- रानी का वियोग बहुत ही दुख देता है । कभी - कभी सोचो तो लगता है कि कृष्ण शायद वियोग के देवता थे, पहले वसुदेव- देवकी को कितना तड़पाया और उसके बाद नन्द -यशोदा को । बहुत- बहुत आभार इस सुंदर रचना के लिए और आपको प्रणाम । मैं ने भी जन्माष्टमी के उपलक्ष में एक कहानी डाली है। आपसे अनुरोध है कि आयें , आपके आशीष की प्रतीक्षा रहेगी।

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    1. कृष्ण के प्रति आपका प्रेम और भक्ति अनुपम है, आपकी कहानी पढ़कर ख़ुशी होगी। आभार!

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  12. बहुत बहुत आभार अनीता जी, चर्चा मंच पर इस रचना को स्थान देने हेतु! इसमें माफ़ी जैसी तो कोई बात नहीं है।

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  13. कान्हा तो पूरे जग के थे ... सभी जगह का उद्धार किया उन्होंने ...
    कौन है जो तृप्त रह सका उनके बगैर ... शायद राधा को छोड़ कर ... मानव मन कहाँ मानता है राधा हो जाना ...

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    1. मन यदि राधा हो जाये तो कृष्ण से पल भर भी दूर न रहे, स्वागत व आभार !

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