पत्ते उड़ा दिए पुरवा बन
टूट गया सुख
स्वप्न, सत्य ने
जैसे ही पलकें
खोलीं,
अंगडाई ले जागी कविता
शब्दों में सुवास
घोली !
छूट गया दुःख भेद,
हृदय से
गीत विराग सरस गाया,
खनक उठी अनजानी
कोई
कदमों में ताल
समाया !
सिमट गया हर माज़ी
पीछे
रिक्त हुआ दिल का
दर्पण,
पत्ते उड़ा दिए
पुरवा बन
अभिनव महकाया
उपवन !
आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 20 अप्रैल 2019 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार यशोदा जी !
हटाएंस्वप्न जब टूटता है जो सत्य ही सामने आता है ... उसे स्वीकार करो हंस के या नहीं... वो नहीं जाता ... स्वीकार करने से सब सहज हो जाता है ...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंसत्य का आभास ही कर देता है मुक्त सभी आकर्षणों से... सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार कैलाश जी !
हटाएंसत्य सटीक।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार विश्वमोहन जी !
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी !
हटाएं.भावों की बहुत प्रभावी और सशक्त प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआवश्यक सूचना :
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