बुधवार, अप्रैल 17

पत्ते उड़ा दिए पुरवा बन



पत्ते उड़ा दिए पुरवा बन  


टूट गया सुख स्वप्न, सत्य ने
जैसे ही पलकें खोलीं,
अंगडाई ले जागी कविता
शब्दों में सुवास घोली !

छूट गया दुःख भेद, हृदय से
 गीत विराग सरस गाया,
खनक उठी अनजानी कोई
कदमों में ताल समाया !

सिमट गया हर माज़ी पीछे
रिक्त हुआ दिल का दर्पण, 
पत्ते उड़ा दिए पुरवा बन  
अभिनव महकाया उपवन !


10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 20 अप्रैल 2019 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. स्वप्न जब टूटता है जो सत्य ही सामने आता है ... उसे स्वीकार करो हंस के या नहीं... वो नहीं जाता ... स्वीकार करने से सब सहज हो जाता है ...

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  3. सत्य का आभास ही कर देता है मुक्त सभी आकर्षणों से... सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति...

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  4. स्वागत व आभार विश्वमोहन जी !

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  5. .भावों की बहुत प्रभावी और सशक्त प्रस्तुति

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