शुक्रवार, जुलाई 12

पिता स्रोत है


पिता स्रोत है  

हाथों के झूले में सन्तान को
झुलाया होगा उसने अनगिन बार
तो कभी झुंझला कर.. दिया भी होगा गोद से उतार !
सुने होंगे बाल मुख से... गीत और कविताएँ
शिशु को देख दुर्बल भर गयी होगी कभी आँखें
 भारी हो गया होगा मन..अनाम चिंताओं से  
झलक नहीं आया होगा भय उन दुआओं से
संयत वस्त्रों में रहने की सीख
दी होगी किशोरी होती बालिका को
 लगाई भी होगी लापरवाहियों पर फटकार
 निज पैरों पर खड़े होने की सीख सी
कभी अनसुनी भी कर दी होगी पीड़ा की पुकार
 की होगी मदद कठिन गृह कार्य में
लाकर दी होंगी पत्रिकाएँ और पुस्तकें
 सुनाई होंगी अनगिनत कहानियाँ
सह ली होंगी कितनी नादानियाँ
कुदरत के प्रति प्रेम के बीज बोये होंगे
साथ बच्चों के हरियाली राह पर चले होंगे
कंधे पर बिठाया होगा जब थके होंगे नन्हे पांव
बिठा साईकिल दिखाए होंगे नये-नये गाँव  
नहीं की होगी व्यर्थ की प्रशंसा
 व्यर्थ ही लगा होगा.. अहंकार को पोषित करना
कभी बिना कहे ही समझ ली होगी मन की बात
कहलवायी होगी कभी बालक से फरियाद
पिता पालक है.. उसके होने से सुरक्षित है संतान
माँ भी गर्व है उसी का, है परिवार का मान !


4 टिप्‍पणियां:

  1. सच है की पिता का महत्त्व ही उतना है जितना माँ का ... पर कई बार उसे वो स्थान नहीं मिल पाता ... पर पिता फिर भी रहता अहि संबल की तरह ...

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