लुटाता सुवास रंग
तृप्ति की शाल ओढ़े
खिलता है हरसिंगार,
पाया जो जीवन से
बाँट देता निर्विकार !
खिलता है हरसिंगार,
पाया जो जीवन से
बाँट देता निर्विकार !
कंपित ना हुआ गात
घाम, मेह, शीत आए,
तपा, भीगा, झूमता
फूलों में मुस्कुराए !
घाम, मेह, शीत आए,
तपा, भीगा, झूमता
फूलों में मुस्कुराए !
जीवित है काफ़ी है
नहीं कोई माँग और,
लुटाता सुवास रंग
रात खिलता झरे भोर !
नहीं कोई माँग और,
लुटाता सुवास रंग
रात खिलता झरे भोर !
एक उसी जगह खड़ा
राही थम जाते सभी,
देखते निगाहें भर
सुवास मधुर जाएँ पी !
राही थम जाते सभी,
देखते निगाहें भर
सुवास मधुर जाएँ पी !
जीवन भी ऐसा ही
है भीतर समान सदा,
देता रहे अनगिनत
अहर्निश वरदान प्रदा !
है भीतर समान सदा,
देता रहे अनगिनत
अहर्निश वरदान प्रदा !
बहुत सुंदर ,ऐसा लग रहा हरसिंगार की सुगंध मन में बस गयी।
जवाब देंहटाएंआपकी सुंदर प्रतिक्रिया से कविता ने अपना लक्ष्य पा लिया, स्वागत व आभार !
हटाएंजिह्वा पर अमृत बूंद सा ... अहा!
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें अमृता जी, आपका काव्य के आस्वादन का अंदाज ही अनोखा है !
हटाएंजीवन भी ऐसा ही
जवाब देंहटाएंहै भीतर समान सदा,
देता रहे अनगिनत
अहर्निश वरदान प्रदा.. बहुत सुंदर!
स्वागत व आभार!
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (20-7-21) को "प्राकृतिक सुषमा"(चर्चा अंक- 4131) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार !
हटाएंस्वागत व आभार!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
जवाब देंहटाएंसुवासित अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंजीवन भी ऐसा ही
जवाब देंहटाएंहै भीतर समान सदा,
देता रहे अनगिनत
अहर्निश वरदान प्रदा !
वाह क्या सार लिखा आपने
अति मधुरमं।
जी प्रणाम
सादर।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन मैम
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंहरसिंगार ने कविता का किया श्रृंगार।
अभिनव।
सुंदर और अनुपम सृजन।
जवाब देंहटाएंतृप्ति की शाल ओढ़े
जवाब देंहटाएंखिलता है हरसिंगार,
पाया जो जीवन से
बाँट देता निर्विकार..बहुत ही सुंदर सृजन।
सादर