दिल को अपने क्यों नहीं राधा करें
जिंदगी ने नेमतें दी हैं हजारों
आज उसका शुक्रिया दिल से करें,
चंद लम्हे ही सदा हैं पास अपने
क्यों न इनसे गीत खुशियों के झरें !
दिल खुदा का आशियाना है सदा से
ठहर उसमें दर्द हर रुखसत करें,
आसमां हो छत धरा आंगन बने
इस तरह जीने का भी जज्बा भरें !
वह बरसता हर घड़ी जब प्रीत बन
मन को अपने क्यों नहीं राधा करें,
दूर जाना भी, बुलाना भी नहीं
दिल के भीतर साँवरे नर्तन करें !
झुक गया यह सिर जहाँ भी सजदे में
वह वही है, क्यों उसे ढूंढा करें,
मांगना है जो भी उससे माँग लें
मांगने में भी भला क्यों दिल डरें !
उर खिलेगा जब उठेगी चाह उसकी
फूल बगिया में अनेकों नित खिलें,
शब्द का क्या काम जब दिल हो खुला
भाव उड़के सुरभि सम महका करें !
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंझुक गया यह सिर जहाँ भी सजदे में
जवाब देंहटाएंवह वही है, क्यों उसे ढूंढा करें,
बहुत ही सुंदर रचना
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(4-7-21) को "बच्चों की ऊंगली थामें, कल्पनालोक ले चलें" (चर्चा अंक- 4115) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार !
हटाएंशब्द शब्द ईश्वर का आशीष बरस रहा !! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !!
जवाब देंहटाएंआदरणीया अनिता जी, बहुत अच्छी सकारात्मक संदेश देती हुई कविता! खासकर ये पंक्तियां:
जवाब देंहटाएंमांगना है जो भी उससे माँग लें
मांगने में भी भला क्यों दिल डरें !
साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर
ओंकार जी, मनोज जी, अनुपमा जी, अनीता जी व बजेंद्र जी, आप सभी का हृदय से स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सरस मधुर रचना
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