नए वर्ष में नए स्वप्न हों
उजाला ही उजाला हर सूँ
हम आँखें मूँदे बैठे है,
प्रकृति-पुरुष का नर्तन चलता
हम अँधियारे में बैठे हैं !
शिव का तांडव लास्य उमा का
दोनों साथ-साथ चलते हैं,
भूकंप कहीं तूफां भीषण
कहीं सुगंधित वन खिलते हैं !
यह सृष्टि बनी है क्रीडाँगन
दिव्य चेतना शुभ मेधा की,
नित्य नवीन रहस्य खुल रहे
है अनंत प्रतिभा दोनों की !
हो जाए लय मन इस क्रम में
श्वास-श्वास यह भरे प्रेम से,
यही ऊर्जा बिखर चमन में
भाव तरंग, वाणी, कृत्य से !
नए वर्ष में नए स्वप्न हों
नव उमंग कुछ नया हर्ष हो,
छोड़ दिया जिसको भी पथ में
साथ उसे लें यह विमर्श हो !
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(३१-१२ -२०२१) को
'मत कहो अंतिम महीना'( चर्चा अंक-४२९५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत आभार!
हटाएंछोड़ दिया जिसको भी पथ में
जवाब देंहटाएंसाथ उसे लें यह विमर्श हो !
वाह! बहुत उत्तम भाव!
स्वागत व आभार, नए वर्ष की शुभकामनाएँ!
हटाएंहो जाए लय मन इस क्रम में
जवाब देंहटाएंश्वास-श्वास यह भरे प्रेम से,
यही ऊर्जा बिखर चमन में
भाव तरंग, वाणी, कृत्य से !..बहुत सुंदर,मन को छूती रचना
स्वागत व आभार, नए वर्ष की शुभकामनाएँ!
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार, नए वर्ष की शुभकामनाएँ!
हटाएंस्वागत व आभार, नए वर्ष की शुभकामनाएँ!
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