गुरुवार, दिसंबर 30

नए वर्ष में नए स्वप्न हों

नए वर्ष में नए स्वप्न हों 


उजाला ही उजाला हर सूँ 

हम आँखें मूँदे बैठे है, 

प्रकृति-पुरुष का नर्तन चलता 

हम अँधियारे में बैठे हैं !


शिव का तांडव लास्य उमा का 

दोनों  साथ-साथ चलते हैं,  

भूकंप कहीं तूफां भीषण 

कहीं सुगंधित वन खिलते हैं !


यह सृष्टि बनी  है क्रीडाँगन 

दिव्य चेतना शुभ मेधा की, 

नित्य नवीन रहस्य खुल रहे 

है अनंत प्रतिभा दोनों की !


हो जाए लय मन इस क्रम में 

श्वास-श्वास यह भरे प्रेम से, 

यही ऊर्जा बिखर चमन में 

भाव तरंग, वाणी, कृत्य से !


नए वर्ष में नए स्वप्न हों 

नव उमंग कुछ नया हर्ष हो, 

छोड़ दिया जिसको  भी पथ में 

साथ उसे लें यह विमर्श हो !


9 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(३१-१२ -२०२१) को
    'मत कहो अंतिम महीना'( चर्चा अंक-४२९५)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. छोड़ दिया जिसको भी पथ में

    साथ उसे लें यह विमर्श हो !
    वाह! बहुत उत्तम भाव!

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    उत्तर
    1. स्वागत व आभार, नए वर्ष की शुभकामनाएँ!

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  3. हो जाए लय मन इस क्रम में

    श्वास-श्वास यह भरे प्रेम से,

    यही ऊर्जा बिखर चमन में

    भाव तरंग, वाणी, कृत्य से !..बहुत सुंदर,मन को छूती रचना

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    उत्तर
    1. स्वागत व आभार, नए वर्ष की शुभकामनाएँ!

      हटाएं
  4. उत्तर
    1. स्वागत व आभार, नए वर्ष की शुभकामनाएँ!

      हटाएं
  5. स्वागत व आभार, नए वर्ष की शुभकामनाएँ!

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