सोमवार, मार्च 25

​​जीवन बँटता ही जाता है

​​जीवन बँटता ही जाता है 


झोली भर-भर कर ले जाओ 

चुकता कब उसका भंडारा,

  चमत्कार यह देख न पाये

जग नूतन चाह जगाता है !


जीवन बँटता ही जाता है !


कण-कण में विश्वास भरा है 

अणु-अणु में गति भर दी किसने, 

सुमधुर, सुकोम, सरस स्वर में 

कोई भीतर से गाता है !


जीवन बँटता ही जाता है !


चट्टानों के भीतर जीवन 

अग्नि गुफाओं में भी सर्जन 

जल, अनिल, अनल, नभ को धारे 

यह धरती माँ सा भाता है !


जीवन बंटता ही जाता है !


स्थूल, सूक्ष्म, कारण इन तीनों 

देहों के पार वही सच है, 

मन उस समता में जागे नित

हर द्वन्द्व जहां गिर जाता है !


जीवन बंटता ही जाता है !


हर रूप वही आकार वही 

भावना, विचार, हर ध्वनि  वही, 

पादप, पशु, पंछी, बादल में 

वह पावन ही दिख जाता है !


जीवन बंटता ही जाता है !


है शिव से न शक्ति विलग कभी 

मन-प्राण समोहित से रहते, 

श्वासों का जो आधार बना 

वह गीतों में गुंजाता है !


12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" मंगलवार 26 मार्च 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. कण-कण में विश्वास भरा है
    अणु-अणु में गति भर दी किसने,
    सुमधुर,सुकोम, सरस स्वर में
    कोई भीतर से गाता है !

    जीवन बँटता ही जाता है !
    अद्भुत भावों को समाहित किये लाजवाब सृजन । होली की हार्दिक शुभकामनाएँ अनीता जी !

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    1. स्वागत व आभार मीना जी, आपको भी शुभकामनाएँ !

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