बुधवार, मार्च 27

जीना है जीवन भूल गए


जीना है जीवन भूल गए  


जब संसार सँवारा हमने 

मन पर धूल गिरी थी आकर, 

जग पानी पी-पी कर धोया 

मन का प्रक्षालन भूल गए !


नाजुक है जो, जरा ठेस से 

आहत होता, किरच चुभे गर, 

दिखता आर-पार भी इसके 

यह बना कांच से भूल गए !


तुलना करना सदा व्यर्थ है 

दो पत्ते भी नहीं एक से, 

व्यर्थ स्वयं को तौला करते 

जीना है जीवन भूल गए ! 


बना हुआ अस्तित्व, मिला सब 

दाता ने है दिया भरपूर, 

खो नहीं जाए लुट न जाए 

चैन की बांसुरी भूल गए !


इक दिन सब अच्छा ही होगा 

यही सोचते गई उमरिया,  

मधुर विनोद, साथ स्वजनों का

है सदा निकट यह भूल गए !

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