शनिवार, मार्च 30

कुछ दिन गुजरात में

कुछ दिन गुजरात में


सूरत 


हमारी यात्रा कल सुबह प्रारंभ हुई जब साढ़े आठ बजे गुड्डू (पुत्र)की भेजी कार हवाई अड्डे ले जाने के लिए आ गई थी। उसने फ़ोन पर कहा था, नवीन डिजायर लेकर आ रहा है, चार्ज किए हुए कैमरे और ख़ाली एसडी कार्ड के साथ, ताकि हम यात्रा में ढेर सारी तस्वीरें खींच सकें। डिजी यात्रा के कारण अंदर जाने में एक मिनट लगा। चेक इन काउंटर पर थोड़ी प्रतीक्षा करने के लिए कहा गया। कोहरे के कारण कई उड़ानें देर से चल रही थीं। ग़नीमत है, सूरत की उड़ान मात्र आधा घंटा देरी से ही थी। हमने लाउंज में दोपहर का भोजन किया, एक-एक करके सारे अख़बार - मिंट, हिंदू, टाइम्स ऑफ़ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स आदि सरसरी तौर पर पढ़े, जिनमें अधिकतर समाचार राजनीतिज्ञों द्वारा एक-दूसरे पर किए आरोपों, प्रत्यारोपों के बारे में थे। एक खबर ने ध्यान खींचा, अमेरिका में ट्रंप को विजय मिल सकती है, विवेक रामास्वामी ने अपना नाम वापस ले लिया है। जहाज़ साढ़े तीन बजे सूरत पहुँच गया। हवाई अड्डे से बाहर निकलते ही ननदोई जी मुस्कुराते हुए दिखे, जो हमें लेने आये थे। उनका घर निकट ही था, सोसाइटी का नाम है अर्णव। 


सूरत की साफ़-सुथरी सड़कों से होते हुए हम घर पहुँचे तो सभी लोग हमारी प्रतीक्षा करते मिले। ननद ने नाश्ते में थट्टे इडली, समोसा और नारियल की चटनी परोसी। उसके बाद बच्चों के साथ कैरम खेला, पतंग उड़ायी और रंगों से चित्र बनाये। सूर्यास्त और कुछ सुंदर तोतों के चित्र उतारे। रात के भोजन तक उनके दामाद भी आ गये। जो आईडीपी कंपनी में काम करते हैं। वह स्वयं आस्ट्रेलिया के सीनियर मैनेजर हैं। वे लोग भारत से विदेश जाने वाले विद्यार्थियों को वीज़ा आदि दिलवाने में सुविधा प्रदान करते हैं। कहने लगे, साल में दो बार काम इतना बढ़ जाता है कि घर लौटने में रात के एक-दो बज जाते हैं। रात के भोजन में सहजन के फूलों की सब्ज़ी और ज्वार की रोटी थी। मिष्ठान में ‘खोया’, जो गुजरात के सिंधी लोगों की एक पसंदीदा मिठाई है। 


अगले दिन सुबह धुंधलका ही था जब हम टहलने निकले। जय श्रीराम के नारों से सजी केसरिया झण्डियाँ पूरी सोसाइटी को शोभायमान कर रही थीं। सूर्योदय के दर्शन किए। प्रात:राश में कोकी, चिवड़ा मटर, खाण्डवी और गाजर का हलवा था। सूत्र फेनी भी पहली बार देखी। ननद अभी से दोपहर के लंच की तैयारी में लग गई है। सिंधी कढ़ी, आलू टुक, दही बड़े तथा रात के लिए सरसों का साग। शाम होने से कुछ पहले हम ‘सुवाली बीच’ देखने गये। जहां दूर-दूर तक काली रेत का मैदान था। लोग ऊँट, घोड़े और क्वार्ड बाइक की सवारी कर रहे थे।हम देर तक मीलों तक फैली भीगी रेत पर टहलते रहे। कहा जाता है, इस समुद्र तट से ही ईस्ट  इंडिया कंपनी ने भारत में प्रवेश किया था और इसे ही भारत की नौसेना का जन्मस्थान भी कहा जाता है। 

स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी


सुबह साढ़े आठ बजे सूरत से रवाना हुए।लगभग तीन घंटे बाद हम एकता नगर, जिसका पूर्व नाम  केवड़िया है, स्थित सरदार सरोवर रिज़ौर्ट पहुँच गये थे।ऐसा प्रतीत हुआ मानो आज हमारा एक स्वप्न पूर्ण हुआ; जब हमने भारत के लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की विश्व की सर्वाधिक ऊँची मूर्ति (१८२फ़ीट) देखी, जो एकता नगर में नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर डैम के निकट स्थित है। इसे स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी कहा जाता है ।यहाँ प्रतिदिन हज़ारों लोग आते हैं।दर्शक दीर्घा में चित्रों और वीडियोज़ के द्वारा सरदार पटेल के जीवन के बारे में जानकारी मिली। जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अग्रिम भूमिका निभायी थी और आज़ादी के बाद राज्यों के एकीकरण में उनका अमूल्य योगदान रहा।


मूर्ति के आसपास का इलाक़ा भी अत्यंत सुंदर दर्शनीय स्थलों से घिरा है। जंगल सफारी में कई वन्य जीवों को निकट से देखने का अवसर मिला। अनेक सुंदर पक्षियों को प्राकृतिक वातावरण में उड़ते हुए देखना एक सुखद अनुभव था।यहाँ एक विशाल मॉल भी है जहां हथकरघा पर बने खादी के वस्त्र और हस्त कला के समान मिलते हैं।जंगल सफारी, ग्लो गार्डन, कैक्टस गार्डन, वैली ऑफ़ फ्लावर्स, नर्सरी, आरोग्य वन आदि के रूप में अनेक सुंदर दर्शनीय स्थान हैं।संध्या के सात बजे लेजर शो आरम्भ हुआ। जिसमें संगीत, प्रकाश, और कथ्य के माध्यम से सरदार पटेल के जीवन और कार्यों को दर्शाया गया। लगभग पंद्रह मिनट का कार्यक्रम मन्त्र मुग्ध कर देने वाला था। 



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