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बुधवार, मार्च 27

जीना है जीवन भूल गए


जीना है जीवन भूल गए  


जब संसार सँवारा हमने 

मन पर धूल गिरी थी आकर, 

जग पानी पी-पी कर धोया 

मन का प्रक्षालन भूल गए !


नाजुक है जो, जरा ठेस से 

आहत होता, किरच चुभे गर, 

दिखता आर-पार भी इसके 

यह बना कांच से भूल गए !


तुलना करना सदा व्यर्थ है 

दो पत्ते भी नहीं एक से, 

व्यर्थ स्वयं को तौला करते 

जीना है जीवन भूल गए ! 


बना हुआ अस्तित्व, मिला सब 

दाता ने है दिया भरपूर, 

खो नहीं जाए लुट न जाए 

चैन की बांसुरी भूल गए !


इक दिन सब अच्छा ही होगा 

यही सोचते गई उमरिया,  

मधुर विनोद, साथ स्वजनों का

है सदा निकट यह भूल गए !

सोमवार, जनवरी 31

श्रद्धा का फूल



श्रद्धा का फूल 


श्रद्धा का फूल 

जिस अंतर में खिलता है 

प्रेम सुरभि से 

वही तो भरता है !


बोध का दिया जलता 

अविचल, अविकंप वहाँ 

समर्पण की आँच में 

अहंकार ग़लता है !


श्रद्धा का रत्न ही 

पाने के काबिल है 

स्वप्न से इस जगत में 

और क्या हासिल है 

आनंद की बरखा में 

भीगता कण-कण उर का 

सारी कायनात 

इस उत्सव में शामिल है !


हरेक ऊहापोह से

 श्रद्धा बचाती है 

चैन की एक छाया 

जैसे बिछ जाती है 

जो नहीं करे आकलन

 नहीं व्यर्थ रोकटोक 

श्रद्धा उस प्रियतम से

जाकर मिलाती है !


श्रद्धा का दीप जले 

अंतर उजियारा है  

हर घड़ी साथ दे 

यह ऐसा सहारा है 

अकथनीय, अनिवर्चनीय 

जीवन की पुस्तक को

 इसने निखारा है !


बुधवार, फ़रवरी 3

अब भी उस का दर खुला है

अब भी उस का दर खुला है 


खो दिया आराम जी का 

खो दिया है चैन दिल का,

दूर आके जिंदगी से 

खो दिया हर सबब कब का !


गुम हुआ घर का पता ज्यों

भीड़ ही अब नजर आती,

टूटकर बैठा सड़क पर 

घर की भी न याद आती !


रास्तों पर कब किसी के 

फैसले किस्मत के होते, 

कुछ फ़िकर हो कायदों की 

हल तभी कुछ हाथ आते !


दूर आके अब भटकता 

ना कहीं विश्राम पाता, 

धनक बदली ताल बदली 

हर घड़ी सुर भी बदलता !


अब भी उस का दर खुला है 

जहाँ हर क्षण दीप जलते, 

अब भी संभले यदि कोई 

रास्ते कितने निकलते !

 

शुक्रवार, सितंबर 25

भोर में कोई जगाये

 भोर में कोई जगाये 

चैन नींदों में समाए 

स्वर्ग स्वप्नों में दिखाए,

भोर में कोई जगाये 

बस यही तुम मांग लेना ! 


बैन में मधुरा भरी हो 

नैन सूरत साँवरी हो, 

जगत की पीड़ा हरी हो 

बस यही आशीष लेना !


पग कभी रुकने न पाएँ

हाथ अनथक श्रम उठायें, 

अधर पल-पल मुस्कुराएं 

बस यही वरदान लेना !


रिक्त हो उर चाह से अब

सिक्त हो रस रास से जब,  

पूर्णता का भास हो तब 

बस यही सुख जान लेना !


श्वासों में भी कंप न हो 

देह-हृदय में द्वंद्व न हो, 

सुरताली स्वच्छंद न हो 

बस यही संकल्प लेना ! 


रविवार, अगस्त 2

रौशनी बन झर रहा तू

रौशनी बन झर रहा तू


चैन दिल का, सुकूं मेरा 
प्रीत का सागर रहा है,
जहाँ रुकते कदम, झुकते 
नयन, तेरा दर रहा है !

कहाँ जाना क्या पाना 
तू ही मंजिल बन मिला है, 
तेरे दम से छूट गम से 
मन पंकज यह खिला है !

दीप जलते हैं हजारों 
रौशनी बन झर रहा तू, 
बह रहा बन एक दरिया 
प्यास खुद की भर रहा तू !

नित लुटाता मोतियों सा 
इक खजाना जिंदगी का, 
खोल देता ख़ुशी-गम में 
राज अपनी बन्दगी का !

रविवार, फ़रवरी 9

एक न एक दिन

एक न एक दिन... जहाँ दो हैं संघर्ष जारी रहेगा जहाँ दो हैं मार-काट नहीं रुकेगी कभी दूसरे की सोच पर मार अभी अन्य के विचार की काट जहाँ दो हैं वहाँ अहंकार टकराएगा एक यदि भीरु होगा दूसरा दबाएगा एक यदि सहिष्णु होगा दूसरा सताएगा जहाँ दो होंगे और समझ होगी वहीं चैन होगा जहाँ दो होंगे और आपसी सम्मान होगा वहीं शांति होगी कुछ तत्व हैं जो समझदारी को कमजोरी मानते हैं जो लड़ने-भिड़ने को होशियारी मानते हैं शांति के हिमायती सहते हैं हर अत्याचार पर एक न एक दिन वे भी हो जाते हैं लाचार अब उधर भी जज्बात उभरने लगते हैं अपनी पहचान के दीप जलने लगते हैं अब साफ हो गया है या तो बराबरी और समझदारी ही काम आएगी अन्यथा चैन घटता ही जाएगा....

रविवार, सितंबर 29

कैसे-कैसे डर बसते हैं




कैसे-कैसे डर बसते हैं


कैसे-कैसे डर बसते हैं
चैन जिगर का जो हरते हैं !

बीत गया जो बस सपना था
यूँ ही बोझ लिए फिरते हैं,
एक दिवस सब कुछ बदलेगा
झूठी आस किया करते हैं !

कोई तो हम जैसा होगा
व्यर्थ सभी खोजा करते हैं,
अंतर पीड़ा से भरने हित
तिल का ताड़ बना लेते हैं !

जैसे कोई कर्ज शेष हो
जग का मुख ताका करते हैं,
कैसे पार लगेगी नैया
तट पर जा सोचा करते हैं !

किस्मत ऐसी ही लिख लाये
उस पर दोष मढ़ा करते हैं,
चले कभी न स्वयं जिस पथ पर
दूजों से आशा करते हैं !