शुक्रवार, मई 10

कुछ दिन गुजरात में - ४

कुछ दिन गुजरात में - ४ अंतिम भाग



भुज

टाइम्स स्क्वायर 

हमारा अगला कार्यक्रम कच्छ रण महोत्सव में सम्मिलित होना है। कच्छ का रण अथवा रेगिस्तान गुजरात के कच्छ ज़िले के उत्तर-पूर्व में फैला एक लवणीय वीरान स्थान है। भूचाल के कारण संभवत: यह समुद्र से पृथक हो गया होगा। कच्छ जाने के लिए निकटतम स्थान भुज है। द्वारिका से भुज जाने के लिए आज सुबह आठ बजे रवाना हुए। मालवा होते हुए जामनगर पहुँचे, जहां विश्व की सबसे बड़ी तेल रिफ़ाइनरी है। ‘बाला हनुमान मंदिर’ में हनुमान जी के दर्शन किए। मंदिर में  “श्री राम, जय राम, जय जय राम” का जाप चल रहा था, बताया गया, १ अगस्त १९६४ को इसका जाप शुरू हुआ था और तब से दिन-रात निरंतर यह जाप चल रहा है। इसके सामने ही रणमल झील तथा एक सुंदर महल की इमारत है। हज़ारों की संख्या में लैपविंग पक्षी सड़क किनारे बैठे हुए थे, जो अचानक एक साथ उड़ान भरते थे और फिर सड़क पार कर एक साथ बैठ जाते थे। यह एक अविस्मरणीय दृश्य था। 




शाम को हम ‘वन्दे मातरम् मेमोरियल’ देखने गये, जिसकी आकृति भारतीय संसद भवन के समान बनायी गई है । जो भुज से दस किमी दूर है। इस अनोखे राष्ट्रीय स्मारक में स्वतंत्रता संग्राम तथा महात्मा गांधी के जीवन से जुड़े अनेक चित्र व वस्तुएँ सहेजी गई हैं। पूरा वातावरण अत्यंत सुंदर व आनंददायक है। बाग-बगीचे, विशाल मूर्तियाँ और संग्रहालय इसे दर्शनीय बनाते हैं। रात्रि में एक ‘लाइट एंड साउंड शो’ भी वहाँ होता है। जिसे देखकर पर्यटकों के भीतर राष्ट्रीय गौरव तथा देशप्रेम की भावना जागती है। हम ‘स्वामी नारायण मंदिर’ देखने भी गये, पर भुज धाम पहुँच गये। जहाँ अनेक देवी देवताओं की आकर्षक मूर्तियाँ रखी हुई थीं, कीर्तन चल रहा था, कुछ महिलाएँ प्रसाद बना रही थीं। 



कच्छ 

टेंट सिटी 

आज गणतंत्र दिवस है। सुबह पुत्र और पुत्रवधू भी मुंबई से आ गये। कल रात पौने दो बजे वे बैंगलुरु से मुंबई पहुँचे थे। रिजार्ट में गणतंत्र दिवस का समारोह मनाया गया। सभी अतिथियों को आमंत्रित किया गया था। जब हम आयोजन स्थल पर पहुँचे, होटल के सभी कर्मचारी पंक्तिबद्ध खड़े थे। झंडा आरोहण के बाद बूँदी के लड्डुओं का प्रसाद भी बाँटा गया। पौने ग्यारह बजे हम सब धोरडो टेंट सिटी, रण, कच्छ के लिए रवाना हुए। लगभग दो घंटे में हम निर्धारित स्थान पर पहुँच गये। सबसे पहले महिला गाइड द्वारा हमें वहाँ की गतिविधियों से अवगत कराया गया। 



यहाँ चारों और चहल-पहल है। सुंदर भवन, साफ़-सुथरी सड़कें और जगह-जगह भव्य झांकियाँ सजायी गई हैं। लोक कलाकृतियाँ सभी का मन मोह रही हैं। कच्छ के वस्त्रों व अन्य कलात्मक वस्तुओं की दुकानें हैं। पूरे क्षेत्र को चौदह भागों में बाँटा गया है। जहां एसी और नॉन एसी आधुनिक टेंट लगे हैं, जिनमें सभी सुविधाएँ मौजूद हैं। एक गोलाकर आकृति में वे टेंट लगाये गये हैं तथा मध्य में विशाल ख़ाली मैदान है, जिसे हरे रंग की चादर से ढक दिया गया है, जो दूर से हरी घास का आभास दिलाता है । एक विशाल प्रांगण में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए स्टेज बना है, जहां शास्त्रीय और लोक, दोनों प्रकार की कलाओं का प्रदर्शन किया जाता है। एक विशाल टेंट में डाइनिंग हॉल है, हमने सैकड़ों अन्य पर्यटकों के साथ दोपहर का स्वादिष्ट, विशिष्ट गुजराती भोजन ग्रहण किया।आकर्षक दुकानें जैसे अपनी ओर बुला रही थीं, कुछ देर घूमकर उनका जायज़ा लिया, फिर अजरख के वस्त्र, एक पेंटिंग, रण उत्सव को दर्शाती रंगीन टीशर्ट्स आदि ख़रीदे। कुछ देर विश्राम करने के बाद हम रण उत्सव के आयोजकों की बस द्वारा व्हाइट रण तक पहुँचे, जहां से ऊँट गाड़ियों द्वारा और आगे ले जाये गये। वहाँ मीलों दूर तक तक केवल श्वेत मैदान ही नज़र आता है। हम आगे बढ़ते रहे और लगभग दो घंटे नमक के उस सफ़ेद मैदान पर टहलने के बाद वापस आ गये। रात्रि भोजन व सांस्कृतिक कार्यक्रम देखने के बाद पुन: व्हाइट रण ले जाया गया, जहां पूर्णिमा के चाँद के प्रकाश में नमक के मैदान दूधिया आभा बिखेर रहे थे। हमने मध्य रात्रि तक वहाँ अविस्मरणीय समय बिताया और अब वापस अपने निवास लौट आये हैं। 



रण महोत्सव के आयोजकों द्वारा आज सुबह साढ़े छह बजे योग साधना करवायी गई। आसन, प्राणायाम, ध्यान में एक घंटा कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। आकाश में चंद्र देव  सुशोभित हो रहे थे और हवा शीतल थी, ऐसे में दो योग शिक्षकों ने योग कक्षा को निर्देशित किया। नाश्ते के बाद हम धौलावीरा  के लिए रवाना हो गये। मार्ग में व्हाइट रण के एक अन्य केंद्र पर पैराग्लाइडिंग का आनंद उठाया। ज़मीन से दो सौ मीटर ऊपर हवा बहुत ठंडी थी, ऊँचाई से दूर-दूर तक श्वेत मैदान को निहारते हुए आकाश में उड़ने अथवा तैरने का यह प्रथम अनुभव था। धौलावीरा के मार्ग में सड़क नमक की एक झील के मध्य से गुजरती है। अति विशाल लवणीय झील में पक्षी भी दिखे। बीच-बीच में पानी कम हो गया था, नमक के खेत बन गये थ, जिन पर लोग चहलक़दमी कर रहे थे। एक ऊँट वाला भी था, जिस पर चढ़कर लोग तस्वीरें खिंचवा रहे थे। 


धोलावीरा में सिंधु घाटी की सभ्यता के अवशेष तथा खंडहर मिलते हैं।भारत स्थित हड़प्पा सभ्यता के अवशेष धौलावीरा में गाइड ने कई महत्वपूर्ण स्थान दिखाये। पाँच हज़ार साल पुरानी इस सभ्यता में किस तरह नगरों का निर्माण किया जाता था, जिनमें पानी का संरक्षण किस तरह किया जाता था, आदि का वर्णन किया।वे स्थान भी दिखाए, जहां नहरों से आया पानी स्वच्छ होकर जमा होता था। नगर की नालियाँ ढकी हुई थीं। कुँए थे, जिनमें सीढ़ियाँ बनी थीं। देखकर बहुत आश्चर्य हुआ तथा गर्व भी कि हम उसी सभ्यता के वंशधर हैं। शाम सवा छह बजे हम अंजर पहुँच गये हैं।यहाँ इस होटल में हमें एक रात बितानी है। कल सुबह वापसी की यात्रा आरंभ होगी। मुंबई होते हुए कल देर रात हम बैंगलोर पहुँच जाएँगे। 


4 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा यात्रा संस्मरण

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  2. मैं भी सोच रहा हूँ इस साल गुजरात जाने की ... आपका आलेख बहुत काम आने वाले हैं ...

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    1. अवश्य जायें, गुजरात में पर्यटन के लिए बहुत कुछ है। स्वागत व आभार !

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