गुरुवार, मई 9

कुछ दिन गुजरात में - ३

कुछ दिन गुजरात में - ३


द्वारिका 


आज हमें कृष्ण की नगरी द्वारिका में जाना है। जो चार धामों में से एक है और सप्त पुरियों में भी सम्मिलित है।इसे स्वयं कृष्ण ने बसाया है, जो आज भी अमूर्त रूप में यहाँ विद्यमान हैं। कृष्ण जिन्हें जो जिस भाव से भजता है, वह उससे उसी भाव से मिलते हैं। राम और कृष्ण इस इस भारत भूमि के दो ऐसे रत्न हैं, जो अपने प्रकाश से युगों से उसे दीप्तिमान कर रहे हैं।जो अनेक हृदयों के सम्राट हैं। जो उनके भीतर कला के सृजन की प्रेरणा देते हैं। समाज में समता को बढ़ाने, सद्भाव का प्रसार करने की प्रेरणा देते हैं। संतों और ज्ञानियों की भूमि की सनातन और अनुपम संस्कृति की नदी के जैसे वे दो तट हैं। जिसका स्रोत अदिति हैं, आदि शक्ति हैं। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति हेतु, अंत:करण की शुद्धि के लिए, चार वर्णों और चार आश्रमों की शुद्धता बनाये रखने के लिए जब ईश्वर अवतार लेते हैं।वे आनंद और शांति का प्रसार करते हैं। 


हरि हर को नित ही भजते हैं, हर के मन में हरि बसते हैं 

अद्भुत है यह प्रेम की गाथा, दोनों जहां निमग्न रहते हैं


कल सुबह साढ़े नौ बजे हम सोमनाथ से द्वारिका के लिए रवाना हुए थे। मार्ग में पड़ने वाले ‘माधव समुद्र तट’ पर कुछ देर के लिए रुके। कुछ छोटी-बड़ी लड़कियाँ शंख-सीपियाँ  बीच रही थीं।कुछ ऊँट वाले सजे-सजाये ऊँटों पर बैठकर तस्वीर खिंचाने और घुमाने का आग्रह कर रहे थे। सागर की नीली लहरें एक लय में बद्ध अठखेलियाँ कर रही थीं। सूरज तप रहा था, इसलिए हम ज़्यादा देर वहाँ नहीं रुके। इसके बाद हम बापू के जन्मस्थान पोरबंदर में कीर्ति मंदिर में जाने के लिए रुके।  उनका पुश्तैनी मकान देखा। जिस कमरे में गांधी जी का जन्म हुआ था, उसे वैसे ही रखा गया है। मकान के दरवाज़े बहुत छोटे-छोटे थे और खिड़कियाँ भी। अनेक कक्षों में उनके जीवन की छोटी-बड़ी अनेक घटनाओं को दर्शाते हुए चित्र लगाये गये हैं। उनके जीवन वृत्त को दीवार पर लिखा गया है। उनके परिवार का वंशवृक्ष भी आकर्षित कर रहा था।होटल पहुँच कर हमने द्वारिकाधीश मंदिर के बारे में जानकारी ली। ज्ञात हुआ, यहाँ से निकट ही इस्कॉन का बड़ा सा द्वार है, उसमें से होकर मंदिर जाना है। मंदिर शाम को पाँच बजे खुलेगा, दोपहर को साढ़े बारह बजे बंद हो जाता है। हमारे पास पूरा दिन है इसलिए शाम को दर्शन करने का निर्णय लिया। 


शाम को पाँच बजे पैदल चलते हुए मंदिर के निकट पहुँचे तो लोगों का एक बड़ा हुजूम वहाँ लगा हुआ था। मोबाइल और घड़ी जमा करानी थी। जूता स्टैंड पर जूते जमा करवा के हम पंक्तियों में लग गये, जो बहुत ही धीमी गति से आगे बढ़ रही थीं। आधे घंटे से भी अधिक देर तक पंक्ति में खड़े रहने के बाद हम उस स्थान पर पहुँचे, जहां से दूर से दर्शन किए जा सकते थे। इसी प्रांगण में और भी कई मंदिर थे पर लोग वहाँ नहीं जा रहे थे। लोगों की आस्था के लिए कोई तर्क नहीं दिया जा सकता। दूर से दर्शन करके हम एक-एक करके अन्य मंदिर देखकर गोमती घाट पर आ गये, जहां सूर्यास्त का सुंदर दृश्य हमें अपनी ओर खींच रहा था। एक वृद्ध महिला दीपदान करने के लिए घी युक्त दिये बेच रही थी। कई विशालकाय बैल या साँड़ वहाँ घूम रहे थे, जिनके बड़े कूबड़ निकले हुए थे। सागर की विशालता और लहरों का नृत्य किसे नहीं मोह लेता। कुछ देर संध्या के आलोक में भीगने के बाद वापस होटल लौट आये। होटल के भोजनकक्ष में मंदिर से सीधा प्रसारण किया जा रहा था, जिन्हें दर्शन नहीं हो पाये थे, वे अतिथि वहीं बैठकर आराम से दर्शन कर सकते थे।



बेट द्वारिका 


आज सुबह नाश्ते के बाद लगभग नौ बजे हम बेट द्वारिका जाने के लिए ओखा स्थित फेरी अड्डे पर आये। आने-जाने की टिकट लेकर फेरी पर बैठ गये।जिसमें बैठने के लिए लोग लगातार आते जा रहे थे, नाव के मध्य में जीवन रक्षक जैकेट्स का ढेर लगा था। श्वेत समुद्री पंछियों के झुंड ऊपर मंडरा रहे थे, लोग उन्हें लाई/मूड़ी  खिला रहा थे। जब सौ से भी अधिक लोग नौका में भर गये, तो पंद्रह मिनट में ही हम उस द्वीप पर पहुँच गये जहां बेट द्वारिका मंदिर है।तट पर पहुँच कर एक ऑटो लिया जिसका चालक एक किशोर था। पहले वह मुख्य मन्दिर में ले गया, वहाँ भी मोबाइल जमा करना था। लंबी लाइन लगी थी और लोग बढ़ते ही जा रहे थे। किंतु मंदिर के आयोजकों ने पंक्तिबद्ध करके धीरे-धीरे लोगों को भेजना आरम्भ किया। दर्शन के बाद सभी को एक कमरे में ले जाकर बैठाया गया।पुजारी के अनुसार उसी स्थान पर सुदामा की कृष्ण से भेंट हुई थी।वहाँ चावल चढ़ाये जाते हैं और प्रसाद में भी कच्चे चावल ही मिलते हैं। कृष्ण-सुदामा की कथा को हज़ारों वर्षों से वहाँ जीवित रखा गया है। इसके बाद हमने कुछ अन्य मंदिर, सोने की द्वारिका आदि तीर्थस्थान देखे। इसके बाद ऑटो वाला ‘मकर ध्वज मंदिर’ ले गया जहां हनुमान जी के दर्शन किए। रास्ता निर्जन गावों से होकर जाता था। इसके आगे ‘आशापुरा  मंदिर’ में देवी के दर्शन किए । ऊँची-नीची भीड़ भरी गलियों से होते हुए वापस फेरी घाट पर आ गये। वापसी की यात्रा में भीड़ पहले से भी अधिक थी। धूप भी तेज हो गई थी। ओखा में उतरकर रुक्मणी मंदिर तथा गोपी तालाब के दर्शन किए। वहीं स्वादिष्ट गुजराती थाली लेकर दोपहर का भोजन किया। तत्पश्चात् बारह ज्योतिर्लिंगों में एक भव्य नागेश्वर मंदिर के दर्शन हेतु गये। शिव की एक विशाल प्रतिमा मन्दिर के प्रवेश द्वार से कुछ आगे ही स्थित है। तीन बजे तक वापस होटल लौट आये। संध्या के समय ‘शिवराजपुर समुद्र तट’ पर दो घंटे बिताये। सूर्यास्त देखा, तस्वीरें उतारीं। कल हमें भुज जाना है। 




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें