मंगलवार, मई 28

अंबर पर है सूरज का घर

अंबर पर है सूरज का घर 


उर अंतर लघु पात्र बना है 

सम्मुख विशाल अतीव सागर, 

रह जाता प्यासा का प्यासा 

ख़ाली रहती उर की गागर !


आशाएँ पलती हैं अनगिन 

लेकिन त्याग बहुत छोटा सा,  

अंबर पर है सूरज का घर 

आख़िर कैसे मिलन घटेगा !


 मौन छिपा इक भीतर सबके

बुद्ध विहरते जहाँ रात-दिन,  

हर सीमा मन की टूटेगी 

उगेंगे तुष्टि के नंदन वन !


ख़ुद ही ज्योति पुष्प बनना है

खिलेगा जो शांति सरवर में,

हर दुख बाधा मिट जाएगी 

बढ़ना होगा नयी डगर में !



12 टिप्‍पणियां:

  1. ख़ुद ही ज्योति पुष्प बनना है

    खिलेगा जो शांति सरवर में,

    हर दुख बाधा मिट जाएगी

    बढ़ना होगा नयी डगर में !
    सकारात्मक भावों से भरी प्रेरक रचना।
    सादर प्रणाम दीदी ।

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" बुधवार 29 मई 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  3. जीवंत दृश्य उपस्थित हो गया. गहरी बात कह गया. समंदर और सूरज. अभिनन्दन.

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    1. सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया ! स्वागत व आभार !

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